________________
३. न्यायरत्नावली (स्याद्वादमार्तण्डटीका सहित) (शास्त्री परीक्षोपयोगी ) अध्याय १-६ तक ४. न्यायरत्नावली (स्याद्वादमार्तण्डटीका सहित ) ( न्यायाचार्य परीक्षोपयोगी ) अध्याय १-६ तक
व्याकरण
१. प्राकृत चिन्तामणि (प्राकृत व्याकरण ) प्रथमा परीक्षोपयोगी
२. प्राकृत कौमुदी ( प्राकृत भाषा पर सम्पूर्ण प्रकाश डालने वाला पंचाध्यायी ग्रन्थ)
१. आर्हतु व्याकरण (संस्कृत व्याकरण ) लघु सिद्धांत कौमुदी के समकक्ष ग्रन्थ
२. आर्हतु व्याकरण (सिद्धांत कौमुदी के समकक्ष ग्रन्थ )
कोष
१. श्रीलाल नाममाला कोष
२. नानार्थोदयसागर कोष (पाठकों के हाथों में)
३. शिवकोष ( अमर कोष की तरह का ग्रन्थ ।
श्रीलाल नाममाला कोश यह आधुनिक शब्दकोष है । इसमें पूज्यश्री ने अनेक प्रचलित अंग्रेजी शब्दों का वैज्ञानिक पद्धति से संस्कृतीकरण किया है । इस विशिष्ट भाषा कोश को देखकर कई विद्वान बड़े प्रभावित हुए | उन विद्वानों में कुछ विद्वानों की सम्मतियाँ इस प्रकार है
सर्वतन्त्र स्वतन्त्र श्रीयुत पं० बालकृष्णशास्त्री, न्याय - वेदान्त, प्रधानाध्यापक, हिन्दू विश्वविद्यालय, बनारस -
" श्रीलाल नाममालानामधेयं नूतनं नामलिङ्गानुशासनं निर्माणकर्तरि व्याकरणप्रवीणतां प्रकाशयदवयवयोग- समन्वय स्पृशा दृशा संस्कारकर्मीकृताधुनिकव्यवहारप्रथित-परदा- दरवारीत्यादिपदकदम्बकावेदनेन प्रभूतेषु संस्कृताभिभाषण प्रभृतिकार्येषु परमोपयोगितामावहतीति ।
प्रधानाचार्य आत्मारामजी महाराज (लुधियाना पंजाब ) -
"मनोरमा कृतिरेषा सानन्दनस्माभिरवलोकिता । इदानींतन शैल्यामनोहरा उत्तमा उपयोगिनश्च शब्दा अत्र निबद्धाः सन्ति । संस्कृत प्राथमिकशिक्षायां पुस्तिकेयं परमोपयोगिनी भविष्यतीत्याशास्महे । उत्साह रहितानामुत्साहप्रदम्भूयात् कृत्यमिदं । को जानाति चिरसुप्तस्यास्मदीयसमाजस्य जागृतेः सुचिह्न ' स्यात्कृत्यमेतत् ।
अस्तु प्रशंसनीयश्चायं भवदीयः परिश्रमो, धन्यवादार्हो हि भवान् !........ इनके अतिरिक्त अन्य विद्वानों ने भी इस ग्रन्थ की बड़ी प्रशंसा की है ।
सिद्धान्त ग्रन्थ
१. गणधरवाद – - ( मूल, प्राकृत गाथा, उनकी संस्कृत छाया, उन पर संस्कृत में विशद टीका की रचनाकार गणधरों के प्रश्नों का एवं उनके उत्तरों का सुन्दर विवेचन किया है ।
१. गृहिधर्म कल्पतरु (मूल प्राकृत गाथा उसकी संस्कृत छाया और उन पर हिन्दी गुजराती
विवेचन
२. जैनागमतत्त्व दीपिका (जैनपारिभाषिक शब्दों का सुन्दर हिन्दी विवेचन )
३. तत्वदीपिका ( नवतत्त्व का विशद विवेचन मूल प्राकृत गाथाएँ उसकी संस्कृत छाया और उनका हिन्दी में विवेचन )
काव्य ग्रन्थ -
१ - लोकाशाह महाकाव्य ( १४ सर्ग युक्त)
२ - शान्ति सिन्धु महाकाव्य ( १४ उल्लासयुक्त)
( १३ )
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org