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व्यवर्ग जीव मुक्ति पासकते हैं, अभव्य वर्गके जीवोमेंसे एक भी जीव मुक्ति नहीं पासकता है, परंतु जैसे कोइ कहे कि दुनियामें एकही घट बन सकता है तो यह बात जूठी है, कारण के संख्यातीत घट बन सकते हैं मगर शरत यह कि चिकनी मिट्टी होनी चाहिये, रेतीका नहीं बन सकता, इसी तरह संसार में भव्यात्मा निमित्त मिलनेसे अगर उद्यम करें तो परमात्मा बन सकते हैं, मगर रेतीकी तरह जो अभव्य होवे कदापि उस पदको प्राप्त नहीं कर सकते हैं, ऐसा होनेपर भी वे लोग एक ही ईश्वरको माननेमें क्या कारण कल्पते हैं, और जब ईश्वर जी की शुद्धदशा से हुआ माने तो फिर ईश्वरपद अना दिका है यह कैसे सिद्ध हो सकेगा ?.
मूरिशेखर - दूसरे लोग कर्मका स्वरूप नहीं समझनेसे जगत्का कर्त्ता हर्ताका तमाम झगडा ईश्वरके गले में डालते हैं, उन विचारोंको यह खबर नहीं है किं जगतका कर्त्ता ईश्वरको मानने से सब ईश्वर ही करता है ऐसा हुआ और इससे हजारों गायों जो कसाई के हाथसे मारी जा रही हैं, इनका मारनेवाला ईश्वर ही सिद्ध होगा, क्योंकि कसाईको बनानेवाला ईश्वर है, ऐसे ही बिल्ली चित्ता सिंह रींच्छ आदि जानवरोंको भी उनके हिसाब से परमात्माने ही बनाये ऐसा साबित होता है, अब विचार करना चाहिये कि उनके खरपेसे नाखून बनाकर हजारों चूहे और हीरण हाथी और गा बगाह - कभी कभी मनुष्योंके नाशका कारण ईश्वर सिद्ध होता है, यह एक बडा भारी दोष ईश्वरपर आरूढ होता है, और कर्महीसे सब कुछ बन सकता है तो फिर इस विषय में नाहक ईश्वर परमात्माको लपेटने से क्या फायदा ? उलटी उसकी भक्तिके बदले आशातना
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