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कार्य कहां तक लिखें १, शिवजीको सर्वशक्तिमान् परमेश्वर माननेवालोंसे हम पूछते हैं कि शिवजीका बलदरूप लेकर वहां जाना, भयंकर शब्द करना, मकान तोडना और खुरोंसे शंगोंसे हरिके पुत्रोंको मारना, इत्यादि अधमकृत्य करनकी क्या जरुरत थी ?, सर्व शक्तिमान् इन बातोंके विना दूसरे उपायसे विष्णुको सचेत नहीं कर सकता था ?, अगर कहोगे नहीं, तो सर्वशक्तिमत्ता उड जाती है, अगर कहोगे 'हा' तो शक्ति होने पर भी ऐसे अनुचित कार्य करनेसे पूर्ण निर्विवेकता सावित होती है, क्या ऐसे निर्विवेकी काम करनेवाला परमात्मा हो सकता है ?, कहना ही होगा कि नहीं...
शिवपुराण धर्मसंहिता अध्याय १० वें में शिवजीके बहोत बेहुदे कामोंका वर्णन है, कहां तक लिखें, मांस तकका भक्षण ऋषियों सहित शिवजी करते थे ऐसा जिकर भी आता है. देखो----- “ भक्ष्यनीनाप्रकारैश्च, हृयैः पुण्यैश्च पानकैः ।
घृतेन दधिना चैव, क्षीरेण च तथा फलैः ॥१७५ ॥ मूलैर्नानाविधैः पुण्यै-माँसैरुच्चावचैरपि । स स्नातो येन सहितः, परिवारेण शङ्करः ॥ १७६ ॥"
शिवपुराण धर्मसंहिता अध्याय १६ वे का श्लोक ८६ वा देखो" सुगन्धैश्च सुरामांसः, कर्पूरागुरुचन्दनैः। मुस्तादियुक्ततोयेन, स्नापयेदीश्वरं सदा ।। ८६.॥
मतलब-सुगंधयुक्त सुरा मांस कपूर अगर चंदन मोया जलमें डाल कर ईश्वरका सदा यजन-पूजन करें ।। ८६॥
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