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भावार्थ - घर धान्य अभय जूति जोडा छत्री पुष्प चंदन स्वारी वृक्ष अपने आपको प्रिय वस्तु शय्या, इनका दान करनेवाला अत्यंत सुखी होता है | २११ ॥
जिस आदमी पर ग्रह हो उसको अमुक अमुक ग्रहमें अमुक अमुक ब्राह्मणको दान देना. इस विषयका जिकर नीचे मूजब है
" गुडौदनं पायसं च, हविष्यं क्षीरषाष्टिकम् । दध्यौदनं हविचूर्ण, मांसं चित्रान्नमेव च ।। ३०४ ॥ दद्यात् ग्रह क्रमादेव, द्विजेम्यो भोजनं द्विजः । शक्तितो वा यथालाभं, सत्कृत्य विधिपूर्वकम् ॥ ३०० ॥"
भावार्थ - गुडसे मिला हुआ भोजन, खीर, घृतका भोजन, दुध, साठी चावल, दहि भात, घृत सहित ओदन, तिलोंकी पिठी सहित भोजन, मांस, अनेक प्रकारके भोजन, इस प्रकार यथा क्रमसे सूर्यादि नव ग्रहोंकी प्रीतिके वास्ते ब्राह्मणों को भोजन करावे. अथवा शक्तिके अनुसार जसा मिले तैसा भोजन विधिपूर्वक सत्कार करके ब्राह्मणों को जिमाना चाहिये || ३०४-३०५ ॥
इन ग्रहोंकी प्रीति के लिये अनुक्रमसे यह दक्षिणा लिखी है" धेनुः शंखस्तथानड्वान्, हेमवासो हयः क्रमात् । कृष्णा गौरायसं छाग, एता वै दक्षिणाः स्मृताः ॥ ३०६ ॥ " या स्मृ-अ- १ । भावार्थ - दुध देनेवाली गौ १, शंख २, बैल ३, सुवर्ण ४, पीला वस्त्र ५, घोडा ६, काली गौ ७, लोहा ८, बकरी
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