Book Title: Mat Mimansa Part 01
Author(s): Vijaykamalsuri, Labdhivijay
Publisher: Mahavir Jain Sabha

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Page 224
________________ (२०२) ग्यारह अंगोंके 'अवदान' नाम टुकडे लेखानुसार गिनती से होते हैं और पार्श्व - वृषण ( अंडकोश ) और सक्थि जांघ ये दो दो होते हैं. इससे पशुके चौदह अंग कहे हैं ॥ ५ ॥ प्रत्येक कल्पोक्त कामोनें श्रुतिको चरितार्थ करना चाहिये. इससे बकरा और चरु दोनों पक्षोंमें आठ ऋचाओंसे होम करना चाहिये ॥ ६ ॥ यज्ञ पशुके अंगों के जितने अवदान नाम टुकडे प्रस्तर नामक कुशों पर करके रक्खे जाय उतने ही पायस नाम खीरके पिंड पशु न हो तब भी करावें ॥ ७ ॥ पंडित ' सत्यव्रत सामश्रमी ' की व्याख्यासे अलंकृत क्षत्रिय कुमार श्रीमदुदयनारायण वर्मा कृत भाषानुवाद सहित मधुपुरस्थ शास्त्र प्रकाश कार्यालय में संवत् १९६३ के वर्ष में छपे हुए सामवेद कौथुमी शाखा गृह्यकर्म प्रतिपादक गोभिल सूत्रके तिसरे प्रपाठकके दशवे खंडमें - पृष्ठ १६४ वे से भी पुरातन वैदिकोंकी दया रसातलमें प्रवेश कर गई थी इस बात का पता मिलता, है सो देखिये ! - " तैष्या ऊर्द्धमष्टम्यां गौः १४ । " " ता ँ संधिवेला समीपं पुरस्तादग्नेरवस्थाप्यो पस्थितायां जुहुयाद्यत्पशवः प्रध्यायतेति १५ ।” " * कलकत्ता ' वाप्तिस्तमिषणयंत्र में ईस्वी सन् १८८० में. छपे हुए चन्द्रकान्ततर्कालंकारकृतभाष्यसे अलंकृत ' गोभिल - गृधसूत्र जो कि बडोदा सेंट्रल लायब्रेरी में है उसमें इस सूत्रकी संख्या १८ लिखि है. इससे 9 सूत्रका फर्क आखिर तक है. महाराजश्रीने जिस पुस्तकसे पाठ लिखा है वो यहां पर न होनेसे निर्णय नहीं हो सका है. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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