Book Title: Mat Mimansa Part 01
Author(s): Vijaykamalsuri, Labdhivijay
Publisher: Mahavir Jain Sabha
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(२०३) व्याख्या-तैय्याः पौषपौर्णमास्याः कई परस्तात् अष्टम्यां कृष्णपक्षीयायां गौः आलब्धव्येति शेषः ।। १६ ।।।
व्याख्या--संधिवेला समीपं मूर्योदयकालात् किंचित् पूर्वमेव तां गां अग्नेः पुरस्तात् अवस्थाप्य उपस्थितायां तस्यां संधिवेलायां सूर्योदयक्षणे इति यावत् यत् पशवः प्रध्यायत मनसा हृदयेन च वाचा सहस्रपा यथा मयि बध्नामि वो पनः ॥ ८ ॥ म० ब्रा० २, २, ८) इति मंत्रेण तत्रैवानो जुहुयात् घृतमिति ॥ १५॥"
भावार्थ-पौष मासकी पूर्णिमाके पीछे अष्टमी तिथिको गोमांस द्वारा मांसाष्टका करे ॥ १४ ॥ संधिवेला ( रात और दिनका संयोग समय ) के कुछक पहिले अग्निके पूर्वभागमें उस गौको लाकर रक्खे. पीछे संधिवेला होने पर-" यत् पश्व प्रध्यायत" इस मंत्रसे घीकी आहुति देकर कार्यारंभ करे ॥१५॥ "हुत्वा चानुमंत्रयेतानुत्वामाता मन्यतामिति ॥१६॥"
व्याख्या हुत्वा कार्यारंभद्योतिकामाहुतिं पूर्वोक्तां च अपि तां गां अनुत्वा मातामन्यतामनुपितानु भ्रातानुसगर्यो - मुसखा सयूथ्यः । ॥९॥ (म. ब्रा. २।३।९॥" इति मन्त्रेण अनुमन्त्रयेत संझपनार्थ निमंत्रयेदिति ॥ १६ ॥"
भाषार्थ-कार्यके आरंभ सूचक पूर्वोक्त आहुति देवे. परं इस समय यव मिला जल, पवित्र कुरा, शाखा विशाखा बर्हि इध्म आज्य-दो समिधा और स्तुव ये सब भी अपने पास आवश्यकतानुसार ठीक रक्खे. “ अनुत्वा" इस मंत्रका पाठ करते हुए मौको मारनेके लिये निमंत्रण देवे.॥ १६ ॥ . . . .
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