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( सायण - भाग्य 1 )
( १ ) वाग्देवतायै पुरुषं पूरकं स्थूलशरोर मित्यर्थः । ( २ ) आशायै अलभ्यवस्तु विषय तृष्णाभिमानिमानित्यजार्मि निवृत्तरजस्कां भोगायोग्यां- स्त्रियम् ।
(३) प्रतीक्षायै लब्धव्यस्य वस्तुनो लाभप्रतीक्षणा भिमानिन्यै कुमारोमनूढां कन्यामालभते ।
ब्राह्मणादयः कुमार्यन्ताः प्रोक्ता मनुष्य विशेषरुपाः परावोsस्मिन् पुरुषमेधे पञ्चाहे. सोमयागविशेषे मध्यमेऽहनि सवनीयपशुभिः समुच्चित्यालब्धव्याः ।
'पूनाका छपा हुआ कृष्णयजुर्वेदका तैत्तिरीय ब्राह्मण ' पृष्ठ-९७२-९७३ |
भावार्थ - ( १ ) वाग्देवताके लिये पुरूषका आलंभ अर्थात् वध किया जाता है.
(२) तृष्णाभिमानिनीदेवता - आशा उसके लिये जामि अर्थात् ऋतुधर्म जिसका निवृत्त हुआ हो और भोग करनेके योग्य न हो ऐसी स्त्रीका आरंभ ( वध ) किया जाता है. (३) मवीक्षा के लिये कुमारी अर्थात जिसकी शादी न हुई हो ऐसी लडकीका आलंभ-वध किया जावे.
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इस पुरुषमेधपंचा हसोमयागमें ' ब्राह्माणादि कुमारी पर्यंत मनुष्य विशेष रूप पशुओंका आरंभ वध किया जावे.
अब कोई कहे कि ' आलंभ ' शब्दका अर्थ हिंसा है इसमें कोई प्रमाण है १ तो उसके उत्तरमें विदित होवे कि," आश्वलायनीय गृहसूत्र गार्ग्य नारायणीय दृत्ति' के पृष्ठ ६८१ वे में लिखा है कि
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