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(१९८) द्वौ मासा मत्स्यमांसेन, क्रिमासान् हारिणन तु औरभ्रेणाथ चतुरः, शाकुनेनाऽथ पंच वै ॥ ३१ ॥ षण्मासं छागमांसेन, तृप्यन्ति पितरस्तथा । पार्षतैः सप्त मासेन, तथाऽटावेणजेन तु ॥ ३२ ॥ दश मासांस्तु तृप्यंते, वराहमहिषामिषैः।। शशकूर्मजमांसेन, मासानेकादशैव तु ॥ ३३ ॥ संवत्सरं तु गव्येन, पयसा पायसेन च । रौरवेण च तृप्यन्ति, मासान् पंचदशैव तु ॥ ३४ ॥ व्याघ्रयाः सिंहस्य मांसेन, तृप्तिद्वादश वार्षिकी। कालशाकेन चानंता, खड्गमासेन चैव हि ॥ ३५ ॥ यत्किचिन् मधुसंमिश्र, गोक्षीरं घृतपायसम् ।
दत्तमक्षयमित्याहुः, पितरः पूर्वदेवताः ॥ ३६॥". ___ अर्थ- दही दुध घृत खांड इनोंसे युक्त अन्नका भोजन करानेसे पितर एक महिने तक तृप्त रहते हैं ॥ ३०॥ और मत्य मांससे दो महिने तक, हिरणके मांससे तीन महिने तक, मेढेके मांससे चार महिने तक, पक्षिओंके मांससे पांच महिने तक ॥ ३१ !! बकरके मांससे छः महिने तक और बिंदुओंवाले हिरणके मांससे सात महिने तक, एण संबक मृगके मांससे आठ महिने तक, सूअर असा इनके मांससे दश महिने तक, शशा कच्छुआ इनके मांससे ग्यारह महिने तक ॥३२.३३।। गोके दुध वा क्षीरके भोजनसे वर्ष दिन तक, रौरव संज्ञक हिरणके मांससे पंद्रह महिने तक ॥ ३४ ॥ मेंढा और सिंह इनके मांससे बारह वर्ष तक, कालशाक और गेंडके मांससे अनंत वर्षों त पितर तृप्त रहते हैं ॥ ३५ . और देवता
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