Book Title: Mat Mimansa Part 01
Author(s): Vijaykamalsuri, Labdhivijay
Publisher: Mahavir Jain Sabha

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Page 205
________________ (१४३) भावार्थ-ब्राह्मणोंको यज्ञके लिये और पालन करने योग्य माता पिता आदिकी पालना करनेके लिये प्रशस्त (शास्त्रोक्त ) मृग और पक्षी मारने योग्य हैं. क्यों कि अगस्त्य मुनिने पहिले ऐसे ही किया है ॥ २२ ॥ पहिले भी ऋषियोंके किये यज्ञोंमें और ब्राह्मण और क्षत्रियोंके यज्ञोंमें शास्त्रोक्त मृग और पक्षियों के मांससे - 'पुरोडास' हुए हैं. इससे आधुनिक मनुष्य भी. यज्ञके लिये प्रशस्त मृग. और पक्षियोंको मारें ॥ २३ ॥ ____आगे चल कर ऐसे श्लोक लिखे है कि, जो एक आर्य मनुष्यके मुंहसे निकले हो ऐसी संभावना करनेसे भी दिल संकुचित होता है. "प्राणस्यानमिदं सर्व, प्रजापतिरकल्पयत्।। स्थावरं जगमं चैव, सर्व प्राणस्य भोजनम् ॥ २८ ॥ . चराणामन्नमचरा, दंष्ट्रिणामप्य दंष्ट्रिण । अहस्ताश्च सहस्तानां, शूराणां चैव भीरवः ।। २९ ॥ नात्ता दुष्यत्यदन्नाद्यान्, प्राणिनोऽहन्यहन्यपि । धात्रैव सृष्टा ह्याद्याच, प्राणिनोऽत्तार एव च ॥ ३० ॥" म-अ-५।। भावार्थ-ब्रह्माने यह संपूर्ण प्राण (जीव ) का अन्न रचा है स्थावर व्रीहि आदि और जंगम पशु आदि, संपूर्ण प्राणीका ही भोजन है. अर्थात्-पाणकी रक्षाके निमित्त ही भक्षण करे सर्वदा नहीं ॥ २८ ॥ चरों (मृगादिकों) का अन्न अचर (तृणादि ) हैं और दंष्ट्रावाले व्याघ्रादिकोंका अन्न विना दंष्टावाले मृगादिक है, और हाथवालं मनुष्यादि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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