Book Title: Mat Mimansa Part 01
Author(s): Vijaykamalsuri, Labdhivijay
Publisher: Mahavir Jain Sabha

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Page 199
________________ ( १७७) इस उपरके श्लोकमें अपना स्वार्थ साधनेके लिये प्रामगोंने मृषोक्ति लगाई है. स्वार्थ यह कि, इस श्लोकको सुन कर दुनियांके लोग विवाह करेंगे तब लग्न कराती वख्त तथा सीमंत वख्त पैदाश होगी और जिमन भी मिलता रहेगा, फिर लडका लडकीका जन्म होगा उस वख्त भी ब्राह्मणोंको पैदाश होगी तिसके बाद उन लडके लडकियोंकी सगाई--नाता तथा विवाह में भी लाभ होता रहेगा. इत्यादि स्वार्थ साधनेके वास्ते ही उन्होंने ऐसे श्लोक बना लिये हैं. इतना ही नहीं किन्तु मरे बाद लडके होंगे तो अपने माता पिता दादा आदिका श्राद्ध करेंगे तब भी हम' ब्राह्मणोंको मिष्टान्नका जिमन तथा दक्षणा मिलेगी " कितवान् कुशीलवान् कुरान्, पाषण्ड स्याँश्च मानवान् । विकर्मस्थान् शौण्डिकाँश्च, क्षिप्रं निर्वासयेत् पुरात् ॥२२५॥" म-अ-९॥ भावार्थ-द्यूत आदि करनेवाले कितव नर्तक और गानेवाले क्रूर और पाखंडी, वेदके विरोधी, विकर्ममें स्थित -अर्थात् श्रुति और स्मृतिसे बाह्य व्रतके धारी और शौडिक- मद्यप, इन सबको राजा अपने पुरसे निकास दे ॥ २२५ ।। यहां पर जूआरी आदिकको नगरसे निकालना लिखासो ठीक है परन्तु यह जो लिखा है कि, वेदके विरोधी और श्रुति स्मृतिसे बाह्य व्रतके धारीको भी पुरमेंसे राजा निकास दे सो कथन पक्षपातसे भरा हुआ है. कारण कि, वेद स्मृति और पुराणोंमें लिखे मूजब पशु और पक्षियोंको मारके देवताओंका पूजन करनेवाले तथा श्राद्ध करके मांसका भक्षण करनेवाले Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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