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१११५) ब्राहाणको अमुक वस्तुका दान देना और अमुक व्रत करके अमुक, सो दिखाते हैं.
वराहपुराण श्वेतविनीताश्वोपाख्यान तिलधेनुदान माहात्म्य नामके ९९ में अध्यायमें ब्राह्मणको तिलोंकी गौ बना कर देनेका जिकर है
विनीताश्वोवाच" कथं सा दीयते ब्रह्म-स्तिलधेनुजिगिषुभिः । भुंक्ते सर्वां च विप्रेन्द्र, तन्ममाचक्ष्वपृच्छतः ॥९०॥" होतोवाचविधानं तिलधेनोश्च, त्वं शृणुस्व नराधिप । चतुर्भिः कुडवैश्चैव, प्रस्थ एकः प्रकीर्तितः ॥ ९१ ॥ सा तु षोडशभिः कार्या, चतुर्भिर्वत्सको भवेत् ।। नासा गंधमयी कार्या, जिह्वा गुडमयी शुभा ॥ ९२ ॥ पुच्छे प्रकल्पनीया सा, घंटाभरणभूषिता । ईदृशी कल्पयित्वा तु, स्वर्णशृंगीं च कारयेत् ॥ ९३ ॥ कांस्यदेहां रौप्यखुरां, पूर्वधेनुविधानतः । कृष्वा तां ब्राह्मणायाशु, दद्याच्चैव नराधिप ! ॥९४॥"
सारांश कि-विनीताश्वने कहा कि, तिलधेनु किस तरह दी जाय जिससे स्वर्ग फल प्राप्त हो, तब होताने जवाब दिया सोलह शेर तिलोंकी बनानी और चार शेरका बछडा, उसके शृंम स्वर्ण के बना कर बांदीके खूर रत्नोंके डोरेके साथ . १ रत्म शब्द आगेके श्लोकमें है सो श्लोक हमने यहां नहीं
उद्धृत किया है,
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