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भावार्थ- सूतजी बोले. इसके अनंतर अनिके वीर्यके प्रभावसे पार्वती देवोके बायें स्कंधको फाड कर दूसरा बालक निकला, तब कृत्तिकाने उन दोनों बालकोंको संधि और शाखाओं में मिला दिया, तभी से इनके नाम विशाख - षण्मुख स्कंध और कार्त्तिकेय आदिक संसार में प्रसिद्ध होते भये, चैत्र शुक्ल पंचमी के दिन शरोंके वनमें सूर्यके समान कांतिवाले दोबालक उत्पन्न हुए. उसी पंचमी के दिन दोनों बालकको एक कर दिया और उसी महिनेको पष्ठीको ब्रह्मा इन्द्र और सूर्य इत्यादि देवताओंने स्वामि- कार्त्तिकेयका अभिषेक कर दिया || १ से ६ ॥ फिर गंध पुष्प सुगंधित धूप छत्रचामर और आभूषण आदिकोंसे पूजित किये हुए इस स्वामीकार्त्तिकके निमित्त इन्द्र विधिपूर्वक 'देवसेना' नाम अपनी पुत्रीको विवाह देता भया. विष्णु भगवान् ने उसको शस्त्र दिये. कुबेर दश लक्ष यक्ष देता भया. अग्नि अपने तेजको देता भया. वायु वाहन देता भया. और त्वष्टा देवता कामस्वरूपी मूर्गा उसको खेलनेको देता भया ७ ॥ से १० ॥
महादेवजीका इतने लंबे विकार, अनिको पीलाये हुए ताला की कल्पनासे कार्त्तिकेय
काल तक उत्पन्न हुआ कामवीर्यका इतना विस्तार; और स्वामीकी उत्पत्तिका विचार, अगर थोडा भी विचारवाला मनुष्य हो तो समझ सकता है कि, भंगडोंकी कल्पनाके सिवाय जरा भी सत्यताको धारण नहीं करता.
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मत्स्यपुराण अध्याय १७८ में अंधकनामा दैत्यके
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