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पशुओंको बांद लेता है ॥ २२४-२२५ ॥ इसके पीछे वह तारकासुर रथमें बैठ कर अपने स्थानमें जाता भया. सिद्ध गंधर्व दैत्य और अप्सरा इत्यादिक सब दैत्यकी स्तुति करते भये. इन सब समेत प्रसन्नता पूर्वक वह दैत्य त्रिलोकीकी संपत्तिओंसे युक्त हुआ अपने पुरमें प्रवेश करता भया ।। २२६२२७ ॥ वहां जाकर पुखराज आदिक रत्नोंसे जड़े हुए आसन पर बैठ गया और किन्नर गंधर्वादिकोंकी स्त्रियोंसे क्रीडा करते उसके कुंडल और मुकुटकी महाशोभा होती भई ॥ २२८ ॥
इस उपरके लेखके देखनेसे विचारशीलोंको अवश्य विचार आवेगा कि, विष्णुको तारकासुर ऐसे बांद कर ले गया कि जैसे व्याध पशुको बांद कर ले जाता है तो फिर विष्णु सर्वशक्तिमान् और परमेश्वर है ऐसा कैसे कह सकते हैं १. तथा विष्णुजी देवताओंके पक्षमें हो कर तारकासुरके साथ युद्ध करनको आये तो भी तारकासुरने करोडों देवताओं को मार डाला तथा इन्द्रादिक लोकपाल और विष्णुको बांदके ले गया. इससे विष्ण ज्ञान शून्य भी सिद्ध हुए, अगर विष्णु ज्ञानी होते तो जान लेते कि, देवताओंके पक्षमें हो कर तारकासुरके सामने युद्ध करनेको मैं जाता तो हूं मगर तारकासुर जबरदस्त दैत्य है मेरे जानेसे भी देवताओंकी जीत नहीं होगी और क्रोडों ही देवताओंको वह दैत्य मार डालेगा, शेष रहे हुए देवता युद्ध से भाग जायेंगे तथा इंद्रादिक लोकपालोंको और मेरेको वह दैत्य बांद कर ले जायगा, इससे मेरी बडी फजेती होगी, इस बातका नहीं जानना इसीका नाम शान शून्यता है..
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