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दिनमें बदन परके सब गहिने उतार कर देता था. याचकों का बज़ार दिन ब दिन गरम हो गया. दूसरे दिन जब राजा कुमारको भोजन के लिये कहता तब कुमार कह देता था कि, मुझे गहिने पहिनाओ फिर जिमुंगा. राजाका प्राणसे भी अधिक प्रिय पुत्र था, अतः जो कुछ कहता था राजाको करना पडता था. इस तरह रोज़ नये गहिने पहिनने और दूसरे दिन दानमें ख़तम कर देनें मंत्रीको नागवार गुजरा. उसने राजासे एकान्तमें कहा कि, इस तरह काम किस तरहसे चल सकेगा १, ऐसे तो खजारा ही खाली हो जायगा और भीख मांगने का समय आ जायगा. उस राजाने कहा, भीख मांगना बेहतर है मगर मैं कुँवरको नाराज नहीं कर सकता. मंत्रीने कहा - भला ! कुंवर भी खुश रहे और गहिने भी बचे रहे तब तो मंजुर है न १. राजाने कहा- हां, फिर क्या हरकत है?.
मंत्री - मैं कलरोज़ उसके भोजन के समय आऊंगा और वो गहिने माँगे उस समय आपने मुझसे अमुक शब्द कहने, फिर देखना सब ही ठीक हो जायगा. मंत्रीने रात ही रातमें लोहेके गहिने और एक छडी तैय्यार करा दिए. दूसरे दिन टाईम पर मंत्री राजभवनमें चला गया. उस समय राजा पुत्रको खानेके लिये आग्रह कर रहा था और पुत्र गहिने माँग रहा था. प्रत्युत्तरमें राजा कहता था कि, आज गहिने तैय्यार नहीं हो सके हैं, तब लड़का कहता है मैंने खाना ही नहीं. राजा मंत्रीको कहता है कि, मंत्रीजी ! वे गहिने जो खजाने में सेंकडो वर्षों से यूँके यूं पडे है. शायद हमारे किसी पुण्यशाली (१) पूर्वज ने ही पहिने होंगे, दूसरे तैय्यार नहीं ह तो आज कुमारको वो ही पहिना दो और हीरे से जड़ी
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