________________
(७७) " तस्माद् गोवर्धनशैलो, भवद्भिर्विविधार्हणैः ।
अर्ग्यतां पूज्यतां मेध्यं, पशुं हत्वा विधानतः ॥ ३८ ॥ . तथा च कृतवन्तस्ते, गिरियज्ञ व्रजौकसः। . . दधिपायसमांसाद्यैः, ददुः शैलबलिं ततः ॥ ३७॥
इस उपरके लेखसे साफ सिद्ध हो गया कि श्रीकृष्ण जानवरोंके मारनेका उपदेश भी करते थे, तैसे ही
विष्णुपुराणके पांचवे अंशके प्रथम अध्यायमेंयोग मायाको मांसादि चढाना कहा है-चो पाठ यह है " ये त्वामार्येति दुर्गेति, देवगर्भाम्बिकेति च ।। भद्रेति भद्रकालीति, क्षेम्या क्षेमङ्करीति च ॥ ८३ ॥ पातश्चैवापराण्हे. च, स्तोष्यन्त्यानम्रमूर्तयः । । तेषां हि प्रार्थितं सर्व, मत्प्रसादा भविष्यति ॥ ८४ ॥ सुरामांसोपहारैश्च, भक्ष्यभोज्यैः सुपूजिताः । नृणामशेषकामास्त्वं, प्रसन्ना सम्पदास्यति ॥ ८५॥ ते सर्वे सर्वदा भद्रे !, मत्मसादादसंशयम् । असन्दिग्धा भविष्यन्ति, गच्छ देवि ! यथोदिता ॥८६॥"
भावार्थ-आर्या दुर्गा, देवगर्भा अम्बिका भद्रा भद्रकाली क्षेम्या क्षेमकरी तूं है, तेस्को प्रातःकाल और तीसरे पहरमें जो नम्र होकर स्तवेंगे उनके सर्व प्रार्थित मेरे प्रसादसे होंगे ।। ८३-८४ ॥ शराब मांस और भक्ष्य भोजनसे अच्छी तरह पूजित हुई हुई प्रसन्न होकर तूं मनुष्योंके संपूर्ण कामोंको देवेगी ।। ८५ ॥ हे सर्वदा भद्रे ! वे सर्व लोक मेरे प्रसादसे निस्संदेह असंदिग्ध होंगे, हे देवि ! तूं जा ॥ ८६ ।।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com