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इस उपर के लेखसे भी सिद्ध हो गया कि श्री कृष्ण शराब और मांसको बडा उत्तम समझते थे, इसी वास्ते योग मायासे श्रीकृष्णने कहा है कि हे देवि ! सुरा औरा मांससे जो लोक तेरी पूजा करेंगे उनके मनोवांछितको मैं पूर्ण करूँगा, बुद्धिमान् लोक खुद विचार करेंगे कि सुरा और मांसको जो उत्तम मानता है उसमें परमेश्वरपना तथा महात्मापना क्या सिद्ध हो सकता है ?, कहना ही पडेगा कि नहीं.
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विष्णुपुराण पांचवा अंश अध्याय १३ वे में लिखा है किता वार्यमाणाः पतिभिः, पितृभिर्भ्रातृभिस्तथा । कृष्णं गोपाङ्गना रात्रौ रमयन्ति रतिप्रियाः ॥ ५८ ॥ भावार्थ - पति पिता और भ्राताओंके हटाने पर भी वे गोपांगनायें रतिप्रिय हो कर रातमें कृष्णके साथ क्रिडा करती हैं ॥ ५८ ॥
इस श्लोक कृष्णजी परस्त्रीगामी थे ऐसा साबित हुआ, अब विचार करना चाहिये कि अच्छे मनुष्यसे भी न बने ऐसे अधमकाम करनेवालेमें परमेश्वरपना कैसे साबित हो सकता है ?.
प. - पु . उ. खं. प. अ. २४५ पत्र २५८ से भी साबित होता है कि श्री कृष्ण गोपीओंकी साथ विषय सेवन करते थे, देखो नीचेके श्लोक -
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त्यक्वा पतीन् सुतान् बन्धून् त्यक्त्वा लज्जां कुलं स्वकम् जगत्पतिं समाजग्मुः कन्दर्पशरपीडिताः ॥ १७० ॥ समेत्य गोप्यः सर्वास्तु, भुजैरालिंग्य केशवम् । बुभुजश्चाधरं देव्यः सुधामृतमिवामराः ॥ १७१ ॥ "
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