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भावार्थ-पति पुत्र और बंधुओंको छोडकर और अपनी कुल मर्यादाका त्याग कर कामदेवके बाणसे पीडित हुई गोपीऐं कृष्णजीके पास आकर भुजाओंसे केशवका आलिंगन करके भोग भोगवती हुई, तथा देवता जैसे अमृतका पान करें ऐसे उनके अधर पान करते हुए.
इससे भी कृष्णजीका कैसा आचार था ? सो सिद्ध हो गया.
प. पु. पा. खंडे श्रीवृन्दावन माहात्म्यके ८३ वे अध्यायसे श्री कृष्ण गोपीओंकी साथे विषय सेवन करते थे इतना ही नहीं किन्तु शराब-दारु पान भी करते थे, ऐसा प्रकटतया सिद्ध होता है, देखो नीचे लिखा हुआ पाठ-पत्र १०३ वे का
" उपवेश्यासने दिव्ये, मधुपानं प्रचक्रतुः । ततो मधुमदोन्मत्तौ, निद्रया मीलितेक्षणौ ॥ ५४॥ मिथः पाणी समालम्व्य, कामबाणवशंगतौ । रिरंम् विशतः कुञ्जे, स्खलवाङ्मनसौ पथि ॥ ५५॥"
भावार्थ-दिव्य आसन पर बैठ कर कृष्णजी और उनकी सहचरी मधुपान करते भये, उसके बाद शराबके नशेमें खराब होकर उन्मत्तताके वश निद्रासे मीचे जाते हैं नेत्र जिनके, कामबाणके वश होनेसे आपसमें हाथसे हाथ मिला कर स्खलित हैं वचन और मन जिनके ऐसे कामक्रीडा करनेकी इच्छावाले हुए हुए कुंज-गाढी झाडीमें प्रवेश . करते
__ भागवत दशमस्कंध उत्तरार्ध अध्याय ५८ में बयान है कि-अर्जुनजी श्रीकृष्णको साथ लेकर वनमें शिकार करनेको
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