________________
भावार्थ-अपनी मंडलीके सखाओंको संग लेकर उनकी मनोकामना सिद्ध करनेके लिये यमुनाके किनारे पर पहुंचे और उन कन्याओंके वस्त्र लेकर झटपट कदंब पर चढ गये ॥ ५९॥ और बालकों समेत आप उढे मार मार कर इसने लगे और अनेक प्रकारकी मश्करीकी बातें करने लगे, कि हे अबलाओ ! हमारे समीप आओ, और अपने वस्त्र ले जाओ ॥ १० ॥ इस समय मैं मश्करीसे नहीं कहता, सत्य कहता हूं, तुम व्रत करनेसे बहुत दुर्बल हो गइ हो इस बातको मेरे मित्र सब प्रकारसे जानते हैं ॥ ११ ॥ मेरेको कुछ दुर्भाव और आम्रह नहीं है. तुम एक एक मेरे पास आती जाओ और अपने अपने वस्त्र लेती जाओ, चाहे सब मिल कर एक वार ले जाओ, जब तक तुम ऐसा नहीं करोगी, मुझे अपने वावा नंदकी सोगन है तुम्हारे वस्त्र कभी नहीं दूंगा ॥ १२ ॥ मनमोहनप्यारेकी मीठी मीठी बातें सुन कर परस्पर देख लज्जित हो गोपीओंने जान लिया कि ये परिहास करते हैं, यह सोच विचार कंठ तक शीतल जलमें जाडे-टाढकी मारी कांपती रहीं, जब बहुत देर हो गई तब गोपीएं बोली ॥१३॥ हे कृष्णचन्द्र ! अन्याय वार्ता मत करो, तुम नंदजीके प्यारे पुत्र हो यह हम जानती हैं, हे प्यारे ! शीतसे दुःखित हम सब कांप रही हैं, इस लिये हमारे वस्त्र दे दो ॥ १४ ॥ हे श्यामसुन्दर प्यारे ! हम तुम्हारी दासी हैं, जो तुम कहोगे सो ही करेंगी परंतु हमारी लाजके ग्राहक मत बनो, जब लाज ही जाती रही तो फिर शेष क्या रहा १, हम आपके सामने निर्लज्ज होना नहीं चाहती, अब कुछ नहीं बिगडा है, धर्मज्ञ ! हमारे वस्त्र देदो नहीं तो हम राजा कंससे जा
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com