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मार्कडेय पुराण अध्याय ७५ त्रप १९९ में— सूर्यदेवकी स्त्री घोडीका रूप धारके तपस्या करतो थी, उस समय सूर्य ने घोडेका रूप धार कर उसके साथ भोग करना चाहा, उस घोडीने उसको परपुरुष समजकर फिर कर अपना मुख उसके सन्मुख किया, मुखसे मुख मिला, बस घोडीके मुखसे तीन पुत्र पैदा हुएं, उनमेंसे एक पुत्र घोडा पर चडा हुआ हाथमें ढाल तरवार तथा बाण तूण युक्त जन्मा, इत्यादि वर्णन है, इन गप्पोंको कोई भी बुद्धिमान् सत्य नहीं मान सकता. तथा ७८ वा अध्याय पत्र २०३ वे में बयान है कि
मधु तथा कैटभ नामके दो दैत्य विष्णुके कानके मेल से उत्पन्न हुए, जब ब्रह्माजीको मारने को तैय्यार हुए तब ब्रह्माजीने निद्रादेवीकी स्तुति करी, भगवान् जाग उठे, जब वे दैत्य ब्रह्माजी के मारनेको उद्यत हुए, तब भगवान् विष्णुने उन दैत्योंके साथ पांच हजार वर्ष बाहु युद्ध किया, यह गप्प गोला भी बुद्धिमान के मानने लायक नहीं हैं, भले ! मिध्यादृष्टि इसके नीचे दबे रहे मगर सम्यक्त्व रूप सूर्यकी अरुणिमा भी इस गप्पगोले रूप तिमिरको क्षण मात्रमें हटा देती है. विष्णुपुराण पांचवे अंशके त्रवीश वे अध्याय मेंकाल पवन सेनाको ले कर युद्ध करनेको आया, वख्त श्रीकृष्ण विचार करते हुए, सो नीचे मुजब —-
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मागधस्य बलं क्षीणं, स कालः पवनो बली । हन्ता तदिदमायातं यदूनां व्यसनं द्विधा ॥ १० ॥ तस्माद्दुर्ग करिष्यामि, यदूनामतिदुर्जयम् । स्त्रियोऽपि यत्र युद्धयेयुः, किं पुनः वृष्णिपुङ्गवाः ॥ ११ ॥
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