________________
इस पाठका यहां पर उल्लेख करनेसे यह मतलब है कि ऐसे हत्यारे कर्म करनेमें भी वैदिक हमने यह किया है, ऐसा विचार एक तो चोरी और उसके साथ सीना जोरी जैसा मामला है, उस वेदमें धर्ममार्ग है ऐसा कौन कबूल कर सकता है ?.
भागवत चतुर्थस्कंध अध्याय ४ पत्र १० वेसे सिद्ध हो जाता है कि-यज्ञमें ब्राह्मण लोग अपने हाथोंसे वध करते थे. देखो" आब्रह्मघोषोर्जितयज्ञवेशसं,
विप्रर्षिजुष्टं विबुधैश्च सर्वशः । मृदावय:कांचनदर्भचर्मभि
नि:सृष्टभांडं यजनं समाविशत् ॥ ६॥" भावार्थ कि-जहां चहूं औरसे ब्राह्मण लोग वेदध्वनि करके यज्ञके पशुओंको मार रहे हैं तथा पूजन कर रहे हैं, चारों और देवता विराजमान हैं, मृत्तिका काष्ट लोहा सुवर्ण कुश और चमें इनके बनाये हुए पात्र जहां पर यज्ञशालामें घरे हैं, उस यज्ञमें सती पहुंची ॥ ६ ॥
जिस समय ब्राह्मणलोग अपने ही हाथोसे ऐसे काम करते थे, उस वख्तके ब्राह्मणोंने धर्मसे हाथ धोया था, इस लिए उनके सहवासमें रहनेवाले भी धर्मसें विमुख ही रहे, इतना ही नहीं अधर्मकार्यमें द्रव्य सहाय कर अधोगति के भी पात्र बने, उन लोगोंने जो ग्रन्थ नये लिखे हैं. और पुराणे ग्रंथोंके टीकारूप मागे बनाये हैं, उनके अवलंबनसे अब तक भी जो लोग उनके वचनोंको सत्यरूप मानकर अंधेरे मार्गमें
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com