________________
(९१) गए, उसके बाद देवमायाको बनाई बडे बडे नितंबोंवाली वो स्त्री अति कष्ट करके महादेवजीकी भुजासे अपनेको छुडाय कर दौडी, रे राजन् ! अद्भुत कथा श्रवण करो, श्रीभगवान् विष्णु ही माया विस्तार करके यह स्त्री हुए थे जब श्रीभगवान् स्त्री बनकर दौडे तब शिव अपने सदाके वैरी कामदेवसे पराजित हो फिर उसकी पदवीका अनुष्ठान करने लगे, हे महाराज! वासिताके यानि ऋतुमतीहथिनीके पोछे पोछे दौडते हुए कामी हाथीका वीर्य जिस तरह गिर जाता है वैसे ही उस मोहिनीके पिछे पडे हुए अमोघ वीर्यवान् भगवान् शिवजीका वीर्य गिर गया.
शरम ! शरम !! शरम !!! अफसोस है ऐसे पुराणके लेखकों पर कि जिन्होंने ऐसी बेहुदी बातें लिखतें जरा भी गौर न किया कि इन कल्पनाओंसे धर्मका नाश होता है, अब बतलाइये कि जिनके धर्मशास्त्र ऐसो बातोंसे भरे हुए हो उनके धर्मके माननेवालोंका कल्याण कैसे हो सकता है ? और जो धर्ममें ऐसे कुकर्मी देव होवे उनके नाम लेनेसे धार्मिक लाभ कैसे हो सकता है, हाँ, भवमें रुलना हो तो इन ग्रंथोंके अनुकूल चलना अन्यथा जलांजलि ही दे देनी चाहिये और शुद्धशास्त्रके अनुकूल होकर राग द्वेष रहित देवको परमात्मा कबूल करना चाहिये, देखो-एक तरफ तो महादेवजीको सर्वज्ञ कहते है और दूसरी तर्फसे कृष्णजीसे प्रार्थना करी कि आप मोहिनीरूप दिखलाओ, इससे सिद्ध हुआ कि महादेवजी अल्पज्ञानी थे नहीं तो अपने स्थलमें रहे हुए मोहिनीको देख सकतें तथा निर्लज्ज भी थे, नहीं तो
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com