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(७४) इत्यादि बयानसे महादेवजी परस्त्रीगामी तशा पूरे दगाबाज ये ऐसा सावित होता है.
पद्मपुराण प्रथम सृष्टिखंड अध्याय १४ पत्र ३६ वे में लिखा है कि रुद्रने ब्रह्माजीका पांचवा शिर छेदन किया जिससे ब्रह्माजीके ललाटमें पसीना आगया, उस पसीनेको ब्रह्माजीने कपालसे हाथमें ले कर पृथ्वी पर फेंका, उस पसीनेमेंसे चक्र बाण तथा धनुष सहित एक जबरदस्त पुरुष पैदा हुआ और उसी वख्त ब्रह्माजीसे कहने लगा, बताओ क्या काम करूं ?, ब्रह्माजीने हुकम किया, इस दुर्बुद्धि रुद्रको ऐसा मार डाल कि फिर उत्पन्न न हो, ब्रह्माजीके इस हुकमको सुन कर वो पुरुष धनुष्को हाथमें लेकर महेश्वरके मारनेको अत्यंत भयानक दृष्टिवाला होकर चला, अत्यंत भयानक पुरुषको अपनी तरफ आता देख कर भयभीत होकर महेश्वर वहांसे भाग निकले और अपने बचावके लिये विष्णुके आश्रममें आये तो विष्णुने शिवजीका रक्षण किया, इत्यादि उल्लेख हैं, इस विषयके प्रतिपादन करनेवाले श्लोक नीचे मृजब हैं" छिन्ने वके पुरा ब्रह्मा, क्रोधेन महतावृतः। ललाटे स्वेदमुत्पन्न, गृहीत्वाऽताडयद्भुवि ॥३॥ स्वेदतः कुण्डली जज्ञे, सधनुष्को महेषुधिः । सहस्रकवची वीरः, किं करोमीत्युवाचह ? ॥ ४ ॥ तमुवाच विरंचिस्तु, दर्शयन् रुद्रमोजसा । हन्यतामेष दुर्बुद्धि-र्जायते न यथा पुनः ॥ ५ ॥ ब्राह्मणो वचनं श्रुत्वा, धनुरुद्यम्य पृष्ठतः । सम्पतस्थे महेशस्य, वाणहस्तोऽतिरौद्रम् ॥६॥
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