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कहा कि मित्रवर ! इस विषयकी फिकर मत करो, काम शरु करो, मैं ऐसा कन्या नहीं जो लोगोंके कहनेसे दोस्ती तोड. लूं, बस बात ही क्या थी !, सुनारने समान आकार के दो कडे एक सोनेका और एक पीत्तलका तैयार किये, अब एक दिन उसको सच्चा कडा पहना कर कहा शहरमें और शहर के बहार आसपास स्थानों में फिरना और मेरा नाम लिये बगैर कहना कि यह कडा कैसा है ? गोपालने एसा ही किया, जहां कहीं उसने दिखाया स्वर्ण परिक्षकोंने उस कडे को सच्चा ही कहा, दूसरे दिन उस धूर्त सोनारने गोपालको पीत्तलका कडा पहिनाया और कहा कि कल फिराया वहां हीं आज भी फिर कर- मैं ( पुरुषोत्तम ) ने यह बनाया है ऐसा कह कर पूछना कि यह सच्चा है कि झूठा ?
सोनारके कहने मूजब आहीरने किया, जहां गया वहाँ झूठा है एसा उत्तर मिला मगर व्युद्ग्राहित-ठगाकर हठ पकडने वाले गोपालने सबको झूठा माना और मनमें विचारने लगा अहो ! इस बस्ती में कितना द्वेष है, उसके नाम लेनेसे कलजो सच्चाथा वोभी आज झूठा होगया, द्वेषका भी कुछ सुमार है, ! ऐसे सोचता हुआ मित्रके पास आया, और कहने लगाकि मित्र । तुमने मुझसे प्रथम सूचना की सो ठीक किया, नहीं तो यहां के हराम खोर लोग अपनी दोस्तीको तुडा देते. ऐसा कह कर पीतलकाही कडा पहिन कर घरपर गया और सब रकम सोनारा पचा गया, बस ऐसाही हाल लोगों का मिथ्याधर्म पोषकोंने किया है, अपने ग्रंथोंमें युक्ति प्रयुक्तिसें भरपुर शुद्ध देव गुरु और धर्मके स्वरुपका दर्शक और मुषितर्गके प्रापक
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