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(४९) पढनेसे साफ मालूम हो जाता है कि विष्णु ब्रह्मा और महादेव ये तीनों देव अलग अलग हैं, तथा महादेवजीका अनुचर वीरभद्रः विष्णु आदि देवसे प्रबल है और विष्णु आदि देव निर्बल है, क्या यह शिवजीके महात्मापनेके लिये उाइ हुई गप्प नहीं हैं ?, ऐसे गप्पगोले जिन शास्त्रोंमें चलाये गये हैं उन शास्त्रोंको माननेवालका ख़र-भला हो ऐसा कौन अकलमंद मान सकता है ?, तथा यज्ञमें रक्खे हुए मांसके जिकरसे यज्ञोंमें अनेक जीवोंकी हत्या की जाती थी यह भी सिद्ध हुआ, और महादेवजी तथा इनके अनुचर वीरभद्रादि बडे क्रोधी और मांसादि भक्षण करनेवाले थे, ऐसे देवोंके कल्पित कथानकोंसे भरे हुए पुराणोंके सुननेसे जीवोंका कल्याण कैसे हो सकता है?
शिवपुराण धर्मसंहिता अध्याय दूसरेमें लिखा है कि-श्रीकृष्णने सोल महिना तक तपस्या पूर्वक शिवजीकी आराधना करी उससे शिवजी श्रीकृष्णजी उपर प्रसन्न होकर कहने लगे तुम मेरेसे पवित्र और त्रिलोकीमें दुर्लभ ऐसे आठ वर माँगो, तब उनके इस वचनको सुनकर श्रीकृष्ण हाथ जोडकर वरदान माँगने लगे, इत्यादि वर्णन भी महादेवजीसे कृष्णको भिन्न साबित करता है तथा कम दर्जेका साबित करता है, न मालूम वैष्णवोंकी इस पुराणके पढते वख्त इन बातों पर श्रद्धा कैसे कायम रहती होगी ?.
शिवपुराण सनत्कुमारसंहिता अध्याय तेरहवें में महादेवजी बिभीषणको कहते है कि मै ही ब्रह्मा विष्णु और महेश हूं, अब विचार करना चाहिये कि उपर के पाठमें
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