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लोन कैसे हो सकेगा?, अगर हुआ तो वह परमात्मा कैसे सिद्ध हो सकता है?, ( यद्यपि जैनावतार भी विवाहित होते हैं मगर वे तो संसारमेंसे हुए हैं तो जिसका भोगावली कर्म ( संस्कार ) बाकी हो तो लग्न करते है, क्यों कि उस क्रियासे भोग कर्म क्षय होता है, देखो-मल्लिनाथप्रभु तथा नेमिनाथस्वामीको भोगावली कर्म नहीं था तो विवाहित भी नहीं हुआ.) __३-तीसरा विरोध, उन लोगोंका मानना है कि जब जगतमें धर्मकी म्लानि होती है और अधर्मका उत्थान होता है तब परमात्मा अवतार लेता है, देखो-गीताजीका श्लोक
" यदा यदा हि धर्मस्य, ग्लानिर्भवति भारत।" अभ्युत्थानमधर्मस्य, तदात्मानं सृजाम्यहं ॥१॥
तनिक सोचो तो मालूम होगा कि यह बात भी ठीक नहीं है, क्योंकि धर्मकी म्लानि जिन साधनोंसे उत्पन्न हुइ वे साधन भी तो उनके हिसाबसे परमात्माने ही बनायें हैं. भला यह क्या बात हुई १, प्रथम ज़हरका दरख्त लगाया और बादमें उसके काटनेकी महिनत उठाइ, क्या ऐसी सर्वज्ञ परमात्माकी करनी हो सकती है?, अगर दुष्ट साधन बना भी लिये तो क्या अवतार वगैर लिये बिगडे हुए यंत्रको साफ करनेमें परमात्मा असमर्थ हैं ?, जो इसको गर्भावासमें आना पड़ा और देह धारण करना पड़ा?. .
४-चोथा-देह और योनिका धारण करना कर्मसे होता है, जब परमात्मा सर्वकर्मोंसे रहित है तो फिर नह देह और निको कैसे धारण कर सकेगा?,
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