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तो अपने ज्ञानसे ही विष्णुको जान लेते परीक्षा के निमित कमल हरनेकी क्या जरुरत थी?, इन बातोंका विचार बुद्धिमानोंको स्वयं कर लेना चाहिये.
शिवपुराण ज्ञानसंहिता अध्याय ७४ तथा ७५ वें को देखो
शिवपूजा पर व्याघ्र - शिकारीका तथा वेधनिधि वेश्यागामी ब्राह्मणका दृष्टांत है, जिसके पढने से यह पुराण केवल गप्पगोलावाला मालूम होता है.
विद्येश्वरसंहिता छट्टे तथा सातवें अध्यायमें ब्रह्मा विष्णुका परस्पर युद्ध तथा अग्निसमान तेजस्वी और जिसका आदि अंत विष्णु और ब्रह्माजीने भी नहीं पाया ऐसा लिंग प्रग़ट हुआ, इत्यादि वर्णन वांचनेसे तीनों ही देवोंकी लीला मालूम पडेगी, तथा उनके शास्त्र कैसे बिभत्स शब्दोंका खजाना है सो भी मालूम हो जायगा.
शिवपुराण सनत्कुमारसंहिता अध्याय १३ वें के पत्र १४२ में विभीषणको महादेवजी कहते हैं-
तपसा मनसा चैव दानेनैव तु यत् सदा । अभ्यासेनैव तत्त्वज्ञै- व्रतैर्योगपरायणैः ॥ ३१ ॥ तत्सर्वं लभते प्राज्ञो, मम लिङ्गार्चने रतः । अहं कर्त्ता च हर्त्ता च स्रष्टा चापि युगे युगे ॥ ३२ ॥ प्रभवः सर्वभूतानां महात्मा नात्र संशयः ।
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अहं ब्रह्मा च विष्णु, सोमवाहं महामुने ! ॥ ३३ ॥ यत् किञ्चिद् दृश्यते लोके, सर्वश्वाहं बिभीषण ! | कामश्चैवाथ वायुश्च नानाऋषय एव च ॥ ३४ ॥ "
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