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विगैर मार डालना, ऐसे मारनेके उपदेश करनेवाले व्यासजीकों क्या कहना चाहिये ? सो फैसला बुद्धिमान् स्वयं कर लेंगे.
शिवपुराण ज्ञानसंहिता अध्याय ६९ वे में लिखा है कि श्रीकृष्णने शिवजीका आराधन करके उनको प्रसन्न किया तथा प्रार्थना करी कि हे शंकर ! इस समय आपकी कृपासे मेरे पास सब कुछ है परंतु दैत्योंसे पीडित होकर मैं आपकी शरण में आया हूँ इत्यादि वर्णन है. वांचो नीचेके श्लोक -
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“ आसनैर्विविधैर्ध्यानैः, प्रसन्नः शङ्करस्तदा । उवाच कृष्णं तत्रैव, त्रियतां वरमुत्तमम् ॥ १७ ॥ ततः प्रसन्नमनसा, वासुदेवो ह्युवाच । साम्प्रतं सकलं मेऽद्य, प्रभावात्तव शङ्कर ! ॥ १८ ॥ दैत्यैश्व पीडितश्चाहं; - त्वामहं शरणं गतः ! पूर्वैश्च सेवितः शम्भु - ब्रह्मणा सेव्यतेऽधुना ॥ १९ ॥"
इत्यादि बहुत बयान है.
शिवपुराण ज्ञानसंहिता अध्याय ७० वें में
विष्णुने शिवजीका आराधन कर के पीड़ा देनेवाले. दैत्यों को मारनेके वास्ते शिवजीसे सुदर्शनचक्र लिया, ऐसा लिखा है.
विष्णुने अनेक प्रकारसे शिवजोका पूजन किया, परंतु शिवजी प्रसन्न नहीं हुए तब विष्णुसहस्र नाम से स्तुति करता हुआ एक एक नामसे कमल चडाने लगे, उस समय शिवजीने उनकी परीक्षाके लिये जो किया सो सुनिये - उन सह कम
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