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विषमासक्त चित्तवाले और धर्मरुचिके त्याग करनेवाले मनुष्य भी जो इस क्षेत्रमें मरते हैं वे फिर संसारमें नहीं आते ॥ ४२ ॥
शिवपुराण ज्ञानसंहिता अध्याय ५२ वा में गौतमऋषिका वर्णन है, जिसमें बहुतसी बेहुदी बातें लिखी है.
अध्याय ५३ वे में गौतमऋषिके साथ अन्य ऋषियोंने कपटसे दुष्ट वर्तन किया ऐसा वर्णन है, .
शिवपुराण ज्ञानसंहिता अध्याय ५७ वे में रामचंद्रजोने शिवजीका आराधन किया ऐसा लिखा है जिसके देखनेसे भी इनकी कपोल कल्पनाका पूर्ण पता मिलता हैं, क्यों कि जब रामचंद्रजी खुद अवतार है तो रावणको जितनेके वास्ते शंकरका आराधन क्यों किया ?.
शिवपुराण ज्ञानसंहिता अध्याय ६१ वें में-२२ तथा २३ वा श्लोक देखो
जहाँ नृसिंहनी अवतारने जिस तरहसें हिरण्यकश्यपको मारा है उस विषयका जिकर है
" उत्संगे च तथा धृत्वा, नखैश्च हृदयं तदा । विदार्य रुधिरं तस्य, पपौ च गर्नयस्तदा ॥२२॥ अन्त्राणि चापि तस्यैव, कण्ठे चैव व्यधारयत् । मारितश्च तदा तेन, पश्यतां हि दिवौकसाम् ॥ २३ ॥"
अर्थ- अपनी गोदमें रखकर नाखुनोंसे उसके हृदयको विदीर्ण कर उसका-हिरण्यकश्यपका रुधिरका नृसिंहजीने
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