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मनुष्यादि, इसमें से कोई भी यहां वा अन्यक्षेत्र में शरीर त्याग करे तो वह विना ही तप जपादि किये मुक्त होता है ||२३|| कर्म बंधन में पडा हुआ देही - जीव यहां - काशीक्षेत्र में प्राणका त्याग करने से मुक्त होजाता है, इसमें ज्ञानकी और ध्यानकी कुछ अपेक्षा नहीं ॥ २४ ॥ न मेरी न स्वजनोंकी यहां अपेक्षाकी जरुरत है जैसा कुछ भी हो किसी प्रकार प्राण त्याग करनेसे अवश्य मोक्ष हो जाती है इसमें संदेह नहीं ॥ २५ ॥ वांचो श्लोक
" अपापश्च सपापो वा, कर्मबंधगतोऽथवा ।
अत्र चेच्च मृतंःस्याचवै, मोक्षगामो न संशयः ॥ २२ ॥” स्वेदजाण्डजो वापि ह्युद्भिदोऽथ जरायुजः । मृतो मोक्षमवाप्नोति, अत्रोन्यत्र तथा कचित् ॥ २३ कर्मबन्धगतो. यो वै, देही मोक्षाय कल्पते । ज्ञानापेक्षा न चात्रवै, ध्यानापेक्षा न कर्हिचित् ॥ २० नामापेक्षा न चात्रैव, स्वजनानां तथा पुनः । यथा तथा मृतः स्याच्चेन्– मोक्षमाप्नोति निश्चितम् ॥ २५ ॥ ३९-४० - और ४१ वा श्लोक पढो बैकुंठपति नारायण लक्ष्मी और देवर्षिओं सहित ब्रह्मा वसु और सूर्य ||३९|| देवराज इंद्र तथा और भी दूसरे देवता इस स्थानमें मेरा व्रत धारण कर वें महात्मा मेरी उपासना करते हैं ।। ४० ।। ओर भी महायोगी अपना वेस छिपाये, महाव्रत लिये, अनन्य मन होकर मेरी सदा उपासना करते हैं ॥ ४१ ॥ इन उपरके श्लोक - २२-२३-२४ और २५ वा को कौन बुद्धिमान् सत्य मानेगा ?, क्यों कि इन
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