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बैठा हुआ ही जान लेता है, इस लिये सिद्ध हुआ कि महादेवजी महात्मा भी नहीं थे और ज्ञानी भी नहीं थे, किंतु धूर्त और अल्पज्ञ थे.
शिवपुराण ज्ञान संहिता अध्याय १६-१७ और १८ वें को देखो
महादेवजी जनेत - जान लेकर पार्वतीको व्याहनेके वास्ते चले, उस वख्त अपने शरीरको ऐसा कद्रूप बनाया कि जिसको देखकर पार्वतीकी माताको महा दुःख हुआ और उसकी ऐसी बुरी हालत हुइ है कि जिसका हदो हिसाब नहीं, इस विषयका पूरा पता इन अध्यायों को बांचनेवाला या सुननेवाला ही लगा सकता है, भला ! ऐसा रूप धारके पार्वतीकी माताको दुःख देनेसे शिवजीके हाथमें क्या आया ?, विना प्रयोजन किसीको दुःख देनेवाला आदमी अज्ञानी तथा महा पातकी गिना जाता है तो क्या ऐसा काम करना महादेवजीको लाजिम था ?.
उसके बाद शिवजीका और पार्वतीका विवाह होने लगा उस वख्त पार्वतीके पाँवके अंगुठेका रूप देखकर ब्रह्माजी ऐसे कामके वशीभूत हुए कि उनका वीर्य वहां ही निकल पड़ा और उस वीर्यसे अट्ठासी हजार ऋषि पैदा हुए, इस दृश्य- नज़ारा को देखकर महादेवजीको क्रोध उत्पन्न हुआ, इत्यादि बयान के पढनेसे बुद्धिमानोंको हाँसी आये बगैर नहीं रहती.
शिवपुराण ज्ञानसंहिता अध्याय १२ वा वांचो -
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