Book Title: Mahavira Charitra
Author(s): Khubchand Shastri
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 13
________________ [११] करनेका सौभाग्य आपको प्राप्त न होसका। सं० १९५९में मंदिरकी नीव डाली थी और सम्वत् १९६०में आप स्वर्गवासी हुए। आपने सं. १९४८में अपनी सहधर्मिणी फूलीबाईकी सलाहसे वर्तमान रा. व. सेठ कल्याणमलजीको दत्तपुत्र लिया था और कामकाज लायक पढ़ा लिखाकर व्यापारमें निपुण कर दिया था. जिसका कि फल वे आज बड़े आरामसे भोग पूज्य पतिक वियोग होनेके बाद हमारी चरित्रनाविका फलीबाईने उजनका बनता हुआ मंदिर बहुत अच्छा सैयार कराया और सं० १९६२ में उसकी प्रतिठा अपने प्रियपुत्र राव सेठ कल्याणमलजीके हाथ से बड़ी धूमधामसे कराई। इसके बाद तुकोगेनमें बंगला बन जानेके कारण वहांभी एक छोटासा जिनमदिर बनवानेका आपका. विचार हुआ और तदनुसार एक छोटा किंतु अत्यंत सुंदर और भव्य मंदिर बनवाकर सं. १९७१ में उसकी भी प्रतिष्ठा अच्छी धूमधामसे आपने कराई। आप स्वयं पढ़ी लिखी नहीं थी तथापि शास्त्र सुननेका । आपको बहुत शौक था।आप पुत्रियोंको पढ़ाना भी पसंद करती थीं। इसीलिये सं. १९७२ में आपने एक कन्या पाठशाला खोली जो अभी तक बराबर चल रही है और उसे सदा चलते रहनेके लिये आप उसका स्थायी प्रबंध कर गई हैं। ___यह पहिले लिखा जा चुका है कि आपने वर्तमान रा० ब० सेठ कल्याणमलजीको दत्त पुत्र लिया था। उक्त सेठजी पर आपका

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