Book Title: Mahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
View full book text
________________
महाकवि ब्रह्म रायमल्ल प्रौढ़ माध्यमिक काल (संवत् १५६१ से १६८० तकी में समाहित किया गया है । पं० रामचन्द्र शुक्ल इस काल को पुणे मध्यकाल-भक्तिकाल (संवत् १३७५ से १७००) के रूप में अभिव्यक्त किया है। प्राचार्य श्यामसुन्दरदास ने सम्वत् १४०० से १७०० तक के काल को भक्ति युग का काल स्वीकार किया है। इनसे धागे होने वाले डा. सूर्यकान्त शास्त्री ने इस काल को तारुण्य काल कह कर सम्बोधित किया है । हा० रामकुमार वर्मा ने हिन्दी साहित्य का प्रारम्भ संवत् ७५० से मानते हुए सम्बत् १३७५ से १७०० तक के काल को भक्तिकाल का युग कहा है। इसके पश्चात होने वाले सभी विद्वानों ने संवत् १७०० तक के काल को भक्तिकाल की संज्ञा दी है।
3 त य का ग्रासोत: काल संवत् १६०१ से १६४० तक का रखा गया है । जो भक्तिकाल के अन्तर्गत प्राता है । हिन्दी साहित्य के ये ४० वर्ष भक्तिकाल के स्वर्ण वर्ष कहे जा सकते हैं। सगृगा भनिधारा के अधिकांश कवियों का साहित्यिक जीवन इन्हीं वर्षों में निखरा और उन्होंने इन्हीं वर्षों में देश को अपनी मौलिक कृतियाँ समर्पित की। महाकवि सूरदास, मीराबाई, तुलसीदास जैसे भक्त कवि इसी काल की भेंट हैं । इसलिये ब्रह्म रायमल्ल को हिन्दी के इन महान कवियों के समकालीन होने का गौरव प्राप्त है। कवि की रचनाओं में भक्ति रस की जो छटा देखने को मिलती है वह सब उसी युग का प्रभाव है। क्योंकि मन्त्र चारों ओर भक्ति रस की वारा बह रही हो तब उस धारा से जैन कवि कैसे अछूते रह सकते थे । संवत् १६०१ से १६४० की अवधि में होने वाले प्रसिद्ध जैनेतर भक्त कवियों का संक्षिप्त परिचय निम्न प्रकार हैकुम्भनदास
ये प्रष्ट छाप के कवि थे तथा बल्लभाचार्य के प्रमुख शिष्य थे। इनकी जन्म तिथि सम्बत् १५२५ एवं मृत्यु तिथि सम्वत् १६२६ के पास-पास मानी जाती है। चौरासी वैष्णवों की वार्ता में लिखा है कि सम्राट अकबर ने कुंभनदास को फतेहपुर सीकरी बुलगाया था । जिसका उल्लेख उन्होंने अपने एक पद में किया है। इनके द्वारा निबद्ध भक्ति रस के पद कीर्तनसंग्रह, कीर्तन रत्नाकर, राग कल्पद्रम आदि में मिलते हैं।
मिश्नबन्धु विनोद भूमिका पृष्ठ-६३ ३. पं. रामचन्द्र शुक्ल-हिन्दी साहित्य का इतिहास पृष्ठ-8 ४. पं. श्यामसुन्दरराम-हिन्दी साहित्य पृष्ठ २६-२१ ५. हिन्दी साहित्य का पालोचनात्मक इतिहास पृष्ठ ४१, ४३ ५. भक्तन को कहा सीकरी सो काम
पावत जात पनहिया टूटी विसरि गयो हरि नाम जाको मुख देखे दुख लागे ताको करन परी प्रनाम ।