Book Title: Mahajan Vansh Muktavali
Author(s): Ramlal Gani
Publisher: Amar Balchandra

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Page 22
________________ २२. प्रस्तावना. ताकीद समझ कर इसके नियमोंमें उलट फेर न होने दें ता. ३१ खुरदाद इलाही सन् ४९ हजरत बादसाहके पास रहनेवाले दोलत खांके हुक्म पहुंचानेसैं ऊमदा अमीर और सहकारी राय मनोहरकी चौकी और ख्वाजा लालचंदके वा किया [ समाचार ] लिखणेकी बारीमें लिखा गया . युग प्रधान जगद्गुरु भट्टारक श्रीजिनचंद्रसरिः इल्काब इनायत मेजर जनरल. सर जांन मालकमकी लिखी हुई मेमायर आव् सेंट्रल इंडिया नामकी पुस्तक दो जिल्दोमै है उसकी दूसरी जिल्दमें उनोंने इस फरमानका जिक्र लिखा है तथा उज्जैण मालवाके जैनमंदिरमें इस फरमाणका शिल्ला लेख है... जैन ग्रथोंसे पुष्करचय प्रादुर्भाव वीतभयपत्तन सिंधुदेशमें २५०० वर्ष लगवग राज्यथा उहां उदाई राजाथा उसनें विशाला नगरी जो पूर्व देसमें उसका स्वामी चेटकराजा उसकी बडी भगनी त्रिसला जो क्षत्री कुंडपुराधीश सिद्धार्थकों व्याही थी उससैं नंदिवर्द्धन १ और वर्द्धमान [ महावीर ] ये दो पुत्र उत्पन्न हुये जिसमें महावीर ३० वर्षकी वयमें राज्य स्त्री त्यागकर निग्रंथ हुआ १२॥ वर्ष तपकर मोहादिकर्मोंकों क्षय कर सर्वज्ञ सर्वदर्शी जैनधर्मका २४ मां तीर्थकर कहलाया चेटककी ७ पुत्रियां हुई ६ तो६ राजोंकी राणियां हुई जिसमें प्रभावती उदाईकों व्याही ७मीसु ज्येष्टा कुमारी दीक्षाले साध्वी हो गई इसके संग पेढाल विद्याधर सन्यासीन बलात्कार संगम करा तब उसके सत्यकी नाम पुत्र उत्पन्न हुआ १४००० सहस्र विद्या सिद्धकर इग्यारमा रुद्र कहलाया जिसको लोक महादेवे कहते हैं उस उदाई राजाकी स्त्री प्रभावतीको देवविनिर्मित जीवित महावीर स्वामीकी मूर्ति प्राप्त हुई, उस प्रतिमाकी पूजा त्रिकाल करती थी, उसकी पूजोपकरण रक्षार्थ कुब्जादासी नियत थी, निमित्तज्ञानसैं अपनी आयु अल्प जांणकर पर भव सुधारने पति उदाई नृपसें दीक्षार्थ आज्ञा मांगी राजानें कहा यदि तूं तप संजम ब्रह्मचर्य द्वारा परलोकमैं देव पद पावे और मेरे संकटमें सहायता करनेकी प्रतिज्ञा करे तो दीक्षाकी आज्ञा देताहूं राणीने प्रतिज्ञा करी आज्ञानुसार साध्वी हो षट्मास तपसंजम आराधकर सौधर्म प्रथम देवलोकमैं देव हुई, इधर जीवित स्वामीकी प्रतिमा राजा उदाई त्रिकाल पूजते रहा एकसमय गांधार देशी श्रावक जीवित स्वामीके दर्शन पूजार्थ आया उसकों अतीसारकी व्याधि हुई तदा साधर्मी जानकर कुब्जा दासीने परिचर्याकी निरोग होनेपर उसनें. दो गुटिका प्रत्युपकारमें कुब्जाकोंदी और कहा एक गुटिकासे तेरा कुब्जत्व निवृत्त होगा दूसरी गुटिकासे सौभाग्य वृद्धि होगी, वैसाही हुआ उससमय उज्जैण १ इसका पूर्ण वृत्तांत जैन दिग्जियछपे हुये ग्रंथमैं देखो ।

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