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महाजनवंश मुक्तावली
जन जगत सेठजीके पास पहुंचा, उसे निश्चयही श्रीमन्त बना दिया । अग्रेंजा सरकारको जगत सेठ साहबकी बदौलत बादशाही इज्जत रखनी हुई । नागपुरके मरेठे राजाको अर्कोकी जवाहिरात, जगतसेठजीने, बख्शी । बनारस में राजा शिवप्रसाद सितारे हिन्द, जो अंग्रेज सरकारके माननीय हो गये. इन्ही वंशके थे जिनने कई इतिहास बनाये हैं, । मूल गुरु मच्छ खरतर लड़ा गोत्र कुचेरा गांमके चारोंतरफ बहुत वसते हैं।
लोढागोत्र २
लोढागोत्र दो हैं । एक लोढा तो चौहाणोंसे उत्पन्न हुए हैं; पृथ्वीराज चौहाणका सूबेदार लखण सिंह देवडाचोहाणके पुत्र नहीं था, तब रविप्रभसूरिजीरुद्र पल्ली खरतरसे निकलीं शाखावालोंसे, लाखण सिंहने, पुत्रके वास्ते दुख निवेदन करा । तत्र गुरुजीने कहा कि जो तूं जैनधर्मी हमास श्रावक बनै तो तेरे पुत्र हो लेकिन कपटसे जैनधर्म ग्रहण करा जिससे पुत्र हुआ वह लोढे जैसा था, तत्र राजा पृथ्वी राजनें कहा, अरे मूर्ख ये तेरे कपटका फल हैं, तब लाखणसी, गुरू को ढूंढता २ बड नगरमें गया, अपणा कपट कहा, गुरू बड वृक्षके नीचे उतरे थे, उस बड़में रही जो देवी, वह बड़ लाई, बोलीके, निशल्य होकर, जैन धर्म कबूलकर, पुत्रके हाथ पैर सक गुरूके आशीर्वादसें हो जायगे, तब इसनें ऐसाही करा सम्यक्त्व युक्त वारह व्रत लिये, गुरूनें उस लड़के पर वास क्षेप करा सब अंगोपाङ्ग प्रगटहुए, उसका लोढ़ा वंश थापन करा, इन लोढोंकी चार शाखा है, टोडर मलोत १ छजमलोत २ रतनपालोत ३ भाव सिंघोत ४ टोडर मल्ल छजमलकों दिल्ली में बादशाहने साहकी पदवी दीथी, राजा टोडर मोजी शौखीनथासो टोडरमलजीको त्रिये व्याहमें गीत गाने लगी, माता बड़लाई पूजते हैं, लोढोंका, जोधपुरमें, राक्की पदवी है, पुत्र हुए पीछे इन लोढोंकी स्त्री, बड़लाई पुजेबगर वाहर नहीं निकलती, व्याहमें कुम्मारका चाक नहीं पूजते, कालीनेंस वकरी नहीं रखते, झडूला भी पूत्रोंके माताका रखते हैं मूल गच्छ रुद्रे पल्ली खरतर, वोगच्छ विच्छेद हुआ बादसम्बत् सतरहसें में केइयोंने तपागच्छ कबूल करा बाकी खरतर मैं है