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११० . महाजनवंश मुक्तावली नहीं जांणता था, भीमसेनके राज्यमें, श्रीमाल वंस वाले जैन धीरे धीरे गुजरात, गोटवाड मालवा, हिन्दुस्तानमें क्रममें विखर गये, श्रीमाल नगरका नाम भीनमाल धरा गया जब उपलदेव होशमें आया तब पिताकी आज्ञा लेकर, छोटेभाई, आसपालकों, संग ले, ओसिया पट्टण जा वसाई, यहां वृद्ध अवस्थामें, रत्नप्रभमूरिःने, इन्होकों जैनधर्म धराया, श्रेष्टि गोत्र स्थापन किया, आसपालका लघु श्रेष्टि गोत्र थापा श्रेष्टि गोत्र तो • १२०१ में वैद वजणे लगे, लघु श्रेष्टि वाले सोनपालजीके नामसे सोनावत बजणे लगे, भीनमालमें भीमसेनकी गद्दी आसल वैठा, वो भी रत्नप्रभसूरिःसे जैनधर्मको धारण करा श्रीमाल गोत्र इसी वास्ते १८ गोत्रोंमें गिणते हैं, श्रीमाल गोत्रकी थापना गौतम स्वामीने ही करदी थी, अब लक्ष्मी माता वृद्धावस्थामें विचारणे लगीं, के मेरे पिताके हाथमें, ५००० विग्र निकाले गये तब इन्होंने अपने पुत्र आसलकों कहकर, उन सबोंको बुलाया और गौतम गुरूकी आज्ञा दयाधर्म पालणा कबूल करवाया टाडमाहव राजपुतानेके इतिहासमें पुष्करणोंका ओडोंस होना लिखा है. ये बिना विचार लिखा गया, पुष्करणे सनातन है नूतन नहीं है क्योंके गौतमकी अवज्ञा करी थी ब्राह्मणोंसे भिन्नता की थी इस वास्ते तत्रस्थ विनों को प्रशन्न करा बेदाधिकार देकर ब्रह्मकर्म नेष्टित करा, दुसरे ब्राह्मण श्रीमाली छन्यातवाले कहते हैं पुष्कर खोदणेसें ओड़ोकों ब्राह्मण करा ये वाती असत्य है यह वार्ता, द्वेषमें बाकी ब्राह्मणोंने शुरु कर्ग है उस समय ब्राह्मणों की आज्ञा नहीं मानी दयाधर्म और गौतम स्वामीकी अवज्ञा करी थी, राजाके देवी सच्चाय थी वह पुष्करणोंनेमानी, सिन्धमें देवी जंठाथी, गोत्र पुष्करणोंका, साण्डिल्यम वगैरह जातिका जुदा जुदा है, एक २ गोत्रमें छव २ नख हैं जैन शास्त्रसें, पोसह करणा माहन, भरत चक्रवतिनें, नाम थापन करा था, पर्व तिथीमें पोषध करणेवाले (धर्मस्य पुष्टिं धत्ते इतिपोषध ) धर्मकी पुष्टि करणे वाले, जैनधर्मी असंक्षा वर्षतक रहै, फेर और धर्म सबोंने मनमतसें आजिवीका. रूप कर डाला, उस पोसह करणा शब्दका अपभ्रन्श पोकरणा लोक कहणे लगे, श्रीमाली ब्राह्मनों की देवी वा राजपुत्री लक्ष्मी है, फिर स्वामी शङ्करा