Book Title: Mahajan Vansh Muktavali
Author(s): Ramlal Gani
Publisher: Amar Balchandra

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Page 212
________________ १७६. महाजनवंश मुक्तावली ७ गच्छभेद किया भाव हर्ष नामसें, इन्होंने अपने हाथसें सिंहसरिकों आचार्य पदवी दी बादशाहने चमर छत्रादि राजचिन्ह संग कर दिये । ६२ श्रीजिनसिंहमूरिः सागर चन्द्रसूरिः १ कीर्ति रत्नसृरिः २ शाखा हुई . ६३ श्रीजिनराजसूरिः इन्होंके समय १६८६ में मण्डलाचार्य सागरसूरिःसे आचार्य खरतर शाखा निकली ( मां गच्छभेद गुरूमहाराजनें सूरिः मन्त्र देकर जिन रत्नसूरिःकों आचार्य पदमें स्थापन करा । ६४ श्रीजिन रत्न सूरिः इन्होंके समय सं. १७०० में रंग विनय गणिसें रंग विजय खरतर शाखा ९ मांगच्छ भेद इस गच्छमेंसें जिन हर्ष गणिके चेले श्रीसारने श्रीसारखरतर शाखा निकाली ये १० मा गच्छान्तर हुआ। ६५ श्रीजिन चन्द्र सूरिः इन्होंके समय १७०९ में ढुंढकमत प्रकटा धर्म दास छींपा वगैरह २२ पुरुषोंने बंधा मत निकाला, हाजी फकीरकी दवासें मत चलाया । इन २२ मेंसे निकले वे वंदन करनेवालेको वेहाजी भाई कहा करते हैं .. ६६ श्रीजिन सुख सूरिः इन्होंकी गोगा बन्दरसे खंभात जाते दरियावमें जहान फटी पाणीसें भरगई कुशल सूरिः का स्मरण किया दादा साहबने नई जहाज वणाके खंभात पहुंचाई वह जहाज अलोपकरी । ६७ श्रीजिन भक्ति सूरिः सादड़ी ग्राममें पर पक्षी तपोकों निरुत्तर, करा पूनामें सिवानी पेशवाकी सभाग, वेदान्त मती ब्राम्हणोंको जीता। ६८ श्रीजिन लाभ सूरिः। ६९ श्रीजिन चन्द्र सूरिः इन्होंने लखनेऊमें प्रतिमा उत्थापक जो मत फैला था, उन्होंको परास्तकर राजा वच्छ रान नाहटेको चमत्कार दे,.. नवावसे राजा वणवादिया, । ७० श्रीजिन हर्ष सूरिः इन्होंके पांच शिष्य निजथे छठा शिष्य नागोरके जती माणक चन्दजी का रूपबंत देखकर मांग कर लेलिया निज शिष्य सूरत रांमजी, जो मांगकर लेलिया उन्होंका नाम मनरूपजी था इन्होंके समय खरतर भट्टारक गच्छमें, १८०० जतियोंकी शंक्षा थी।

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