Book Title: Mahajan Vansh Muktavali
Author(s): Ramlal Gani
Publisher: Amar Balchandra

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Page 215
________________ महाजनवंश मुक्तावली यती विद्यमान बीकानेर में है । ऐसें प्रभावीक गुरु होगये । १७९ ७४ श्रीजिनकीर्तिसूरिःतत्पद् ७५ जंगमयुग प्रधान वर्त्तमान भट्टारक श्रीजिन चारित्र सूरीश्वर विजयते, क्षेमधाड़ शाखामें उपाध्याय श्रीनेममूर्ति जीगणिः । वाचक विनय भद्रजीगणिः उपाध्यायक्षेम माणिक्यजीगणिः तथा पंडित राजसिंहजी गणिः इन्होंकों दादा साहिब अर्स पर्स थे जिन्होंने छत्रपती थारे पायनमें इत्यादि दरपूनम एक स्तवन सीरणी गुरूकी करते एकाशन हमेश करते वदन कमलवाणी विमल इत्यादि अनेक छन्द महाकवी षट् शास्त्र वेत्ता हुए उन दोनोंके शिष्य पंडित लद्धि हर्षजी सवियाण गांममे ठाकुरके पूजनीय हुए उन्होंकेशिष्यछठेमा सलोचपंच तिथी उपवास उभय कालप्रतिक्रमणवालब्रम्हचारी सर्व आरम्भके त्यागी सवाक्रोड़ परमेष्ठी मंत्र के स्मारक प्रसिद्ध नांम श्रीसाधुजी दीक्षानाम धर्मशीलगणिः उन्होंके बड़े शिष्य हेमप्रिय गणिः लघुपंडित श्रीकुशल निधान मुनिके शिष्य उपाध्याय श्रीरामलाल ( ऋद्धिसार गणिः ) ने इस ग्रंथका संग्रह करा जो कुछ जादह कम लिखणेमें आया होय तो मिथ्यादुस्कृतं, ये ग्रंथ सर्व विवेकी भव्य जीवोंको आनन्द मंगल सुख वृद्धि करो श्रीरस्तु कल्याण मस्तु लेखकपाठकयोशुभं ( दोहा ) विक्रम संवत् उगण शत, छासठ ऊपर मान, श्रीविक्रमपुर नग़में गंगसिंह राजान। १। खरतर भट्टारकपती; श्रीजिन कीर्तिसूरिन्द । पट्ट प्रभाकर जय रहो, काटो कुमति फंद । २ । गुण अनेक जगमें अचल, मंत्र विसारद पुरि, जापजपे उपगारपर श्री जिनचारित्रसूरिः ३ धर्मशील गुरूराजके मुनिवर कुशल निधान । युक्ति वारिधिः गुण प्रगट, उपाध्याय पदथान । ४ । संग्रह कीनो ग्रंथको रामगणिः ऋद्धिसार । चार वर्णकी ख्यातको. समझोसवनरनार ५ विद्याशालासे सदा जैनधर्म उद्योत, । पढसुणकर श्रीसंघ के, नित २ मंगल जोत । ५ । इतिश्री ओसर्वसमुक्तावलि श्रावकाचार कुलदर्पण संम्पूर्णम् ॥

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