Book Title: Mahajan Vansh Muktavali
Author(s): Ramlal Gani
Publisher: Amar Balchandra

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Page 208
________________ १७२ . महाजनवंश मुक्तावली करा औदीच्य ब्राम्हणोंको उपदेश देकर जैनी करा जो गुजरातमें भोजक मारवाडमें ( गंद्रपके नामसे पहचाणे जाते हैं ) धर्म ३०० 'घर जैन पालते हैं जैनीसिवाय दान नहीं लेते हैं इन्होंके समय १२ १३ में आंचल १२२६ में सार्ध पुनमिया १२५०. आग मिया हुए ४६ श्री जिन पति सूरिःजी इन्होंके समय चित्रावाल गच्छी चैत्यवासी जग चन्द्रसूरिःने वस्तुपाल तेजपालकी भक्तीसें क्रिया उद्धार करा तप करणेसें चित्तोड़के राणेजीने १२८५ में तपा विरुद दिया वस्तुपाल तेजपाल लहुडीन्यात ओसवाल पोरवाल श्रीमालियोंमें करनेवाला, मायाका अखूट भण्डारीने इन्होंका नन्दिमहोत्सव करा जिसने जगत् चन्द्रसूरिःकी सामाचारी कबूल करी, उस गरीवकों श्रीमन्त वणाते गया,जगत् चन्द्रसूरिःने श्रावककों पोसह व्रत पच्चखाण करे पीछे पोसहमें भोजन एकाशन करणेकी प्ररूपणा करी और आंविलमें ६ विगय टालके सींधा निमक काली मिर्च पोतीके वेसणके चिलड़े वगैरह अनेक द्रव्य खाणेकी प्ररूपणा करी सो अभी गुजरातमें प्रथा चलती है बड गच्छके आचार्य जब अपने समुदायकों आज्ञा कारी नहीं देखा तब हनुमान गढ़ बीकानेरके इलाकेमें आय रहै पिछाड़ी फिर जती श्रावक · मिलके आचार्य मुकरर किया उन्होंके पाटानुपाट विद्यमान सं. विक्रम १९६६ कार्तिकमें मुम्बईमें बडगच्छके आचार्य हमसे मिले थे लेकिन तपागच्छके वस्तुपालतेनपालकी सहायतासें बड़गच्छ निर्बल होता गया जतीभी कइयक तपागच्छमें मिलगये श्रावक भी मिलते गये तथापि पट्टधर आचार्य वडगच्छ विद्यमान है। ४७ श्री जिनेश्वर सूरिः इन्होंके समयमें १३३१ मे सिंहसूरिः से लघुखर तर शाखा निकली ३ गच्छ भेद हुआ इनमें जिन प्रभसूरिः चमत्कारी हुए । ४८ श्री जिन प्रबोधसूरिः ४९ श्री जिनचन्द्रसूरिः दिल्लीके बादशाह चित्तोड़का राणा जेसलमेरकारा बल मंडोवरके राठौड़राव राना ऐसे ४ राजा गुरूके भक्त हुए इस

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