Book Title: Mahajan Vansh Muktavali
Author(s): Ramlal Gani
Publisher: Amar Balchandra

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Page 196
________________ १६० महाजन महाजनवंश मुक्तावली. होय तो, राजा उस धनकों, धर्मकांममें लगा सकता है, अगर खजानेमें डाले तो, गैर इन्साफ है । खाविन्दके मरणे वाद, उसकी औरतकों कुल अख्तियार है, सव जायदादकों, अपने अधिकारमें रक्खे, वेटेको अख्तियार नहीं के बिना माके हुक्म कुछ खरच करसके, चाहै जात पुत्र हो, चाहै गोदका, स्थावर, ( थिराहणेवाली ) जंगम ( फिरणे दुरणेवाली ) मिल्कियतका देणा या बेचणा किसीका हक्क नहीं सिवाय धणियाणीके, इसमें इतनी शर्त जरूर है कि उसकी चाल चलननाकिस नही मिल्कियतकी मालकिन सदाचारिणी हो सकती है, गैर चलण होणे पर वेटेको अख्तियार इन्साफी पंच तथा सरकारके इन्साफसें हो सक्ता है, क्योंके धनके लालचसें झूठा मी बलवा पुत्र उठादेवे वद चलण सबूत होनेसें बेटा मिल्कियतका मालिक होकर कपडारोटी वगैरह खरचा पंचोंके राह मुजब बांधणा माताके लिए इन्साफसे है गैर चलण हो तो भी, नेक चणल माता होय तो भी पुत्रके जायदाद पर कोई हक्क नहीं है हुक्म मातासे सब कामकर सक्ता है, ___ अगर कोई शख्स विना शन्तान अपने मरणेके वक्त अपने घरका बन्दोबस्त करना चाहै तो इस तरह वसीहत नांमी लिख सक्ता है जो दत्त पुत्र अपनी औरतके हुक्मकी तामील करनेवाला हो, खाबिन्दके मरणे वाद अगर दत्तपुत्र वसीहत नामेवाला सखस बदनियत हो जाय तो, स्त्रीको अख्तियार है उस वसीहतनामेको खारिज करके, दुसरेके नाम पर वसीहतनामा लिखा सक्ती है, धर्म कामके लिए या जाति व्यवहारके लिए खाविन्दकी मिलकियतकों रेण व्यय करणा स्त्रीकों अख्तियार है, मानापको अपने जात पुत्र पर भी इतना अख्तियार है अगर हुक्मके वर खिलाफ चले, या धर्म भ्रष्ट हो जाय, याने कुल मर्यादा विपरीत खानपान करणे लगे तो घरसें निकाल देवै, इसी तरह गोद लियेको भी निकाल सक्ता है चाहै उसका व्याह भी कर दिया चाहै कुलः अस्तियार दे दिया होय, मातापिताकी मौजूदगीमें जात पुत्रको अख्तियार नहीं है जायदाद मावापकीकों रेण वाव्यय करसके अलग होके कमाया होय, उस पर उसका अख्तियार है रेण वा वेचणेका ।

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