Book Title: Mahajan Vansh Muktavali
Author(s): Ramlal Gani
Publisher: Amar Balchandra

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Page 198
________________ १६२ महाजनवरी मुक्तावली है खाविन्द उस हालत में मांग सक्ता है दुकाल बड़ी मुसीबत पडी हो, वाकी नहीं ले सक्ता, यह सत्र कायदे जैनी आमलोकों के लिए, अर्हन्नितिसें, लिखा गया है, ॥ निर्णय, ) ( अथ सूतक जिसके घर मृत्यु होय उसके घर १२ दिनका सूतक, एक बापके दो बेटे अलग सूतक के घर खान पान नहीं करे तो उसके घर सूतक नहीं सूतकवाले घरमें ५० रहवासी अन्य जाती रहती होय तो वह सब सूतकवाले गिने जाते हैं चोक १ दरवज्जा २ होय तो बारह दिन तक उस घरके लोक जिन मूर्तिकी पूजा नहीं कर सक्ते साधू तथा साधर्मी उस घरका खान पान फल सुपारी तक नहीं खाते २ मन्दिरमें दूर खड़े दर्शन कर सक्ते है मुखसें धर्म शास्त्र प्रगट नहीं बोले मुर्देको कांध देनेवाला २४ पहर सूतकी है, न पूजा करे, न किसी, खान पानकों चीजों छुवे, कपड़े धुलाणे मुर्देके संग जाणेवाला ८ पहरका सूतकी है, दासदासी " अपने घरमें मर जाय तो ३ दिन उस घरका सूतक जिस रोज बालक जन्में उसी दिन मर जाय तो एक दिनका सूतक, जानेवाली स्त्रीकों ४० दिन सूतक जितने महीनेका गर्भ गिरे उतने ही दिनका सूतक, आठ वर्ष तक बालकके मरणेका ८ दिन तक सूतक हाथी घोड़ा ऊंठ गऊ भैंस कुत्ता विल्ली घरमें मर जाय तो जब तक उठावे नहीं उहां तक सूतक गिना जाता है, । ( सर्व धर्मसार शिक्षा.) मोह द्वेष अज्ञानता, तजे कर्म अरुनार । ऐसो शिवहरि ब्रह्मजिन, सबको करो जुहार । १ । सवैया ) विद्यमान तीर्थकरकों बन्दन जो पुन्ह वैसोही पुन्यफल जिन मूर्ति वन्दनको । चारित्र व्रत पालवेको साधूकों फल कहा सो ही फल सूत्रोंमें प्रतिमा अभिनन्दनकों ॥ दशाश्रुत स्कन्ध सूत्र आचारांग राय प्रश्नी तीनोंका पाठ एक हित सुख मोक्ष स्पन्दनको । ऐसी सूत्र आज्ञा देख शंका मत चित्त राखो जिन प्रतिमा पूजन फल पापके निकन्दनकों । २ साधू दर्शन पुन्य फल, तीरथ दुयमसाध थावर तीर्थ देर 1 .

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