Book Title: Mahajan Vansh Muktavali
Author(s): Ramlal Gani
Publisher: Amar Balchandra

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Page 197
________________ महाजनवंश मुक्तावली १६१ जिसकी औरत वदचलन होय तो, पतिको अख्तियार है, अपने घरसें निकाल दे, वद चलन औरत, पती पर रोटी कपड़ेका दावा नहीं कर सक्ती है, कोई सख्सकी औरतने पती मरे वाद लड़का गोद लिया, और वह कुंवारा ही मरगया तो, दूसरा वेटा फिर अपने नामपर गोद ले सक्ती है, मरे लड़केके नामपर नहीं ले सक्ती है सासूकी मौजूदगीमें मरे हुए बेटेकी वहूकों सुसरेके धनमें रोटी कपड़ेके सिवाय दुसरा कुछ भी अख्तियार नहीं है, वेटा गोद लेणा वगैरह सर्व काम सासूकी आज्ञा मुजब करणा चाहिये, सासूका अन्तकाल हुए वाद फिर बहूका अख्तियार चल सक्ता है, मातापिताके मरे वाद बेटे अपने हिस्से अलग करणा चाहै तो, सबके हिस्से बराबर होणे चाहिये, पिताके जीते हिस्सा चाहै तो, मुताबिक मरजी पिताके होगा, पिताने जीतेकराव सियतनामा सही है मरे पीछे भी अगर कोई भाई कंवारा होय, और हिस्से करणेका मौका आ जाय तो, मुनासिब है, उसके व्याहका खर्चा अलग रखकर, वा व्याह करके, बाकी दालतका हिस्सा बराबर वांट लेना, अगर बहिन कंवारी हो तो, सबी भाई मिलकर पिताके धनसें सबोंको चौथा हिस्सा दूर कर व्याह कर देणा, कोई भाई ऐसा होय कि, अपने बापका धन नहीं खरच कर, नौकरीसें या किसी इल्मसें, या फौजमें बहादुरी बताकर धन हासिल करै, उस दौलतमें दुसरे भाइयोंका हक्क नहीं है, विवाहसें सुसरालसे, जो कुछ धन . मिले या दोस्तसें इनाम पावै, उसमें भी भाइयोंका हक नहीं पहुंचता, अपने कुलका दबा हुआ धन, वापभाईन निकाल सके, उसको अपनी ताकतसें, बिना भाइयोंकी सहायताके, निकाल लावे तो उस धनमें किसी भाईका हिस्सा नहीं हो सक्ता. विवाहके वख्त या पीछै जिस औरतकों, उसके मातापिताने गहने कपड़े गांम नगर जमीन जहांगीरी जो कुछ दिया हो, उसकों कोई पीछा . नहीं ले सक्ता, वह सब औरतका है चाचा, बड़ी बहन भूआ, मासी, भाई, सुसरा, सासू, या उसके खाविन्दनें जो कुछ दिया हो वह सब औरतका २१-२२ ।

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