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महाजनवंश मुक्तावली
का नाम धराते थे वह शूद्र कहलाए ये संज्ञा चार ब्राह्मण १ वैश्य २ क्षत्री ३ और शूद्र ४ श्रीकृष्ण चन्द्रके राज्यमें कृष्ण द्वैपायन व्यासने गीता बनाई उस वक्त यह नाम, पूर्व नाम पलटाके धरे गये, गीता कर्मके अनुसार चार वर्ण बंधे हैं, व्यापार, खेती करणा, गऊओंको गोकुलमें रखणे वालेकों, वैश्य कहा है, इस न्यायसें तो जाट, कुणबी, सीरवी, अहीर वगैरह भी, ऐसा कृत्य करणेसें गीताके हिसाबसें वैश्य होणा चाहिये, पुराणोंमें छ कर्म करणेवाले ब्राह्मनोंकों अधम लिखा है । यतः ) असीजीव मषीनीव, देवलो ग्रामयाचकः । धावकः पाचकश्चैव, षड़ेते ब्राह्मणाधमाः ॥ ५ ॥ अर्थ ) तलवार बांधके फौजोंमें सिपाही रहै नोकरी करै, मसीयाने लिखणा नामाठामा व्यापार करे, देवलों याने मन्दिरोकी नोकरी कर बलि माक्षिणादि करे, ग्राम याचक यानेब्रती, यजमान वणाके, दापा, वंट, परणे मरणे आदिका लेवे, धावक, याने, नोकरीमें इधर उधर जावै, सन्देशा करे कासीदी करे, ऐसे ब्राह्मणोंको, पुराणोंमें, अधम लिखा है, अरे कलियुग ऐसा कोई काम नहीं है, सो इस पेटके लिए ब्राह्मण लोक नहीं करते होंय, केवल नाम मात्र ऋषियोंकी शन्तान हैं, दातारकी भक्ति, दान देणा गृहस्थका धर्म है, गृही दानेन शुद्धयति, इस वचनसें, बाकी नौकरी हाजरी भराके जो ब्राह्मणोंको पुन्य समझ दान देते हैं, वो देणेवाले, बड़े मूर्ख हैं, पुन्य उसका नाम है, जिसका बदला नहीं लिया जावै, इस बातकों समेट, उग्र कुलका इतिहास लिखते हैं,।
उग्रकुल दुनियांका कार्य चलतेही स्थापन हुआ, वह क्रमसें राजकार्य करते २ कोई भुजबली राजाधिराज भी बन गये, ऐसा जमाना नहीं गुजरणा बाकी रहा होगा कि, चारों वर्णोंवाले राजा न हुए होय, याने जमानेके फेरसे अंत्यजभी राजा हो चुके, और राजा अन्नसें मोहताज हो गये, ये सब पुन्यपापके योगसें, कर्मोंने जीवोंकों अनेक नाच नचाये हैं, और नचाता है, और नचावेगा, जमानेके फेरफारसे कभी धर्म जैन प्रबल रहा, इसबक्त नाना धर्मका शिक्का अपणा वक्त दिखा रहा है, मिथ्यात्व जीवके संग अनादि कालमें लग रहा है, संसारमें रुलणेवाले जीवोंकों, जिस तरफ शरीरके