Book Title: Mahajan Vansh Muktavali
Author(s): Ramlal Gani
Publisher: Amar Balchandra

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Page 167
________________ महाजनवंश मुक्तावली १३१ 'प्रभात समय दिखाई देती हैं, भारत भूमींमें फकत् म्लेच्छ भील वगैरह 'पहाड़ो के पास पढ़ लोक रहते थे, और वस्ती नही थी, उन्होंको ग्रीक लोकोंनें पेस्तर आकर, इल्म सिखाकर हुशियार करा, इस लेखका "परमार्थ तो हमारी समझसे तो ऐसा निकलता है कि ये वार्ता दक्षिण भरतकी नहीं है हिमालिये के पहले तरफ जो उत्तर भरत है उसमें ४९ नम्र वालोंकों ग्रीक लोकोंने कोई जमाने में अपणे सागिर्द बणाये होंगे, खैर -रहणे देते हैं | जब ऋषभ देवनें बाल्यावस्थात्यागी नाभी मनुके हुक्मसें, युगलिक लोकोंने, युगलियों में अन्याय फैलता हुआ देखके, ऋषभकों राजा बनाया, उस वक्त लोक जुबानकी सजाक कुछ नहीं गिंणारने लगे, अब्बल तो कल्पवृक्ष फलहीन हुए, देख प्रथम तो चावल पकाकर सबको रसोई करके खांणा सिखाया, फेर वस्त्र बुननेवाले नाई चित्तरे वगैरेह ५ कर्मके - सो कर्म करणेवालोंकों कारीगरी सिखलाई प्रजार्को वढाणे संगमें जन्मी कन्याका विवाह बन्दकर दूसरेकों वेटी देणा और दुसरे गोत्रीकी लाणा सिखाकर युगला धर्म मिटाया तत्र रसायनिक प्रयोग पास होकर, प्रजा बढी, गढ, कोट, किला, अस्त्र, शस्त्र, हाथी घोडे, गऊ, ऊंठ सब मनुष्योंके काम लायक करे नोकरी लिखत पठित प्रमुख ७२ कला प्रगटकर प्रजाक सिखलाई ६४ कला स्त्रियोंको, ग्रहाचार सिखाकर, नवनारू, नवकारू, ऐसे अठारह श्रेणी के १८ प्रश्रेणीके ३६ कुलक्षत्री वंशमेंसे प्रगट करे सीसगर १ दरजी २ तंबोली ३ रंगारे ४ गवाल ५ बढ़ई ६ संग्रास ७ तेली ८ धोत्री ९ धुनियापिनारा १० कन्दोई ११ कहार १२ काछी १३ कुम्भार १४ कलाल अर्कअतरवाले १५ माली १६ कुंदीगर १७ कागजी १८ । कृषाण १९ वस्त्रकार २० चितेरा २१ बंधेरा २२ रेवारी २३ लखारा २४ ठंटारा २५ राजपटवा २६ छप्परबंध २७ नाई २८ भड़भूंजा २९ सोनार ३० लोहार ३१ सिकलीगर ३२ धीवर पालखीवाले ३३ चमार ३४ गिर ३५ सुथार ३६ इन्होंमें फेर कई २ तरहकी भिन्नता भई, जैसे छीपादरजी १ मारूदरजी टोप मियानाई १ मसालचीनाई २ मारू कुंभार १ वांडा कुंभार २ इसतरह जिन्होंने ये कृत्य किया वोही जाति होगई ब्राह्मणिया

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