Book Title: Mahajan Vansh Muktavali
Author(s): Ramlal Gani
Publisher: Amar Balchandra

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Page 188
________________ १५२ महाजनवंश मुक्तावली. समय भोजन अपने हाथकी बनाई हुई खाते थे, वह स्वयंपाकी वजते थे, अब तो चारोंकामकों, ब्राह्मण मुस्तैद हैं पीर १ बबरची २ भिस्ती ३ खर ४ तो बहुतही अच्छा हैं मांसं मदिराके त्यागी जो मारवाड़ गुजरात कच्छके ब्राम्हण हैं, उन्होंसे चारों काम कराणा जैनधर्मियोंके लिए, वे जा तो नहीं है लेकिन जल दिनमें दोवक्त छाणना, चूलेमें लकड़ीमें, सीधे सरंजाममें, साग, पात, फल, फूलके जीवोंकों, तपासणा, जैन धर्मकी स्त्रियोंको, अथवा मर्दोको करणा वाजिव है ब्राह्मण तो फरमाते हैं हम तो अग्निके मुख हैं, जो होय सो सब स्वाहा लेकिन दया धर्मियोंको, इस बातका विवेक रखणा, एकका झूठा, तथा बहुत मनुष्योंने सामिल बैठके जीमना, ये उभय लोक विरुद्ध है डाक्टर लोक कहते हैं गरमी सुजाक कोढ़ खुजली आंख दुखणा वगैरह कई किस्मकी बिमारी, ऐसी तरहकी हैं, जो झूठ खाणेवालोंकों, लग जाती है, जिस वरत.णसे मुंह लगा कर, पाणी पीणा, वह वरतण पाणीके मटकेमें नहीं डालणा, कारण, उस पाणीसें रसोई, बणनेमें आवे तो, साधू सन्त, अभ्यागतकों देणा, उन्होंको अपणी झूठ न खिलाना है, वह अपना रोग लगाना है, वह महा पाप है, धर्म ध्यानके कपड़ोंसें, गृह कार्य नहीं करणा, स्त्रियोंको तीन दिन ऋतुधर्म आनेपर, घरका अनाज चुगाणा, कोरा कपडा सीणा, वगैरह रिवाजोंको बन्ध करणा, ठाणांग सूत्रपाठके, दशमें ठाणे, खूनकी असिझाई भगवानने फरमाई है, स्नान २४ पहर पीछे करणा, २ दिनसें करणा बाजिव नहीं है, सूतक जन्म पुत्रका १० दिन, लड़कीके ११ दिन, मरणका सूतक १२ दिन, जादह सूतक अभक्ष विचार देखणा हो तो रत्न समुचय हमारा छपाया हुआ पुस्तक देखना जहां तक भक्षाभक्षका विवेक नहीं, उहांपर्यंत पूरा व्रतधारी श्रावक नहीं हो सकता, रोगादिक कारण यत्न करे, श्रावकको तन दुरस्त रखणा, जिससे समझ वान, धर्म १ अर्थ २ काम ३ और मोक्ष ४ चारों साध सकता है, अन्य दर्शिनियोंकी संगत पाकर श्रावक धर्मकों छोडणा नहीं चाहिये, राज दंडे, लौकिक भंडे ऐसा रुजगार खान पान, धन प्राप्ति कभी नहीं करणा चाहिये, रात्रि भोजन करणेसें हैजा,

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