Book Title: Mahajan Vansh Muktavali
Author(s): Ramlal Gani
Publisher: Amar Balchandra

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Page 193
________________ महाजनवंश मुक्तावली. १५७ ज्यादा डाले सो घर होना, कारण कोई पूछ तो, फरमाती हैं, जमाई - मर जाय तो , मेरी बेटी क्या खायगी ऐसा मांगलिक शब्द सुनाती हैं, जो इल्मदार कला कौशल सीखी हुई कन्या होगी तो, ऐसे मोकेपर अपनी कारीगरीसें चारोंका पेट भरसक्ती है, अपनी. तो विशायत ही क्या है, वाजे स्त्रिये इल्महीन पती मरे पीछे गुजरान चलाणे, पर पुरुषका आसरा लाचारीसें लेती है, लड़कपनेमें ब्याह करणेसे, जब पतीका वियोग होनेसे होश सम्हाले पीछे कुललांच्छित करना सूझता है, या, जब हमलरहजाताहैतो, विरादरीके कोपसें गिराती है, वाजै अपघात करती हैं, मुल्क छोड़ती हैं, सरकारसे सजा पाती है, जाति वहिस्कृत हो जाती है, इस वास्ते शूद्रसंज्ञाके लोकोंमें, पुनर्विवाहकी रस्म जारी है, ऐसे २ बाबतोंकों देख गवर्मेन्ट पुनर्विवाहकों पूरा अमलमें लाया चाहती है, क्योंके प्रजा बृद्धि और पंचेन्द्री जीवोंकी हिंसाका बचाव, और स्वामी दयानन्दजी भी यही तूती बजागये, समाजी लोक बजाते फिरते हैं जैन निग्रन्थका हुक्म है, तपस्या करके इन्द्रियोंको दमन कर, धर्म तत्परता होणा विधवाओंने, या दुनियातार्क, सो प्रायः जैन कोमकी स्त्रिये बेलातेला अठाई, पक्ष, मासादिकोंकी, तपस्या करती हैं, कई रोज पीछे हाड मांस सुकाकर मृत्यूको प्राप्त होती है, ऐसा व्यवहार करणे वालियोंके लिए, ये शिक्षा, निग्रन्थ प्रवचनकी, बहुत लायक तारीफके है, लेकिन सबोंका दिल, और बदन, और आदत, एकसा होता नहीं, उन्होंके लिए, अपनी २ कोमके पंचोंने, सुलभ निर्वाह मुजब कायदेके प्रबन्ध, सोचनेकी जरूरी है, राजपूतोंमें पड़देका रिवाज शील ब्रत कायम रखणेकों ही जारी किया गया है, यह जबराईसे शील व्रतका, कायदा रखणा है, सच्च है जो स्त्री स्वेच्छा चारिणीयां होकर, इधर उधर भटकेगी, जरूर लांच्छित हो जायगी, पुरुषोंका संग, दुराचारी स्त्रियोंका सहवास, मनुष्योंकी प्रार्थना और धनका लालच, एकान्त पाकर भी, जो अपना व्रत कायम रखती हैं वही सती जगतमें धन्य है, स्त्रियोंका स्वभाव है, जब रूपवन्त युवानको देखे तब, मदन वाणसें मदको अधोभागमें छोड़ देती है भगवान महावीर भगवती सूत्रमें फरमा गये हैं जो स्त्री मनमें कुशीलकी.

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