Book Title: Mahajan Vansh Muktavali
Author(s): Ramlal Gani
Publisher: Amar Balchandra

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Page 187
________________ - महाजनवंश मुक्तावली. .. १५१ वाकिफ रहो ५२ राजद्रोह मत करो ५३ देशी उन्नतिका ढंग हुन्नर इल्म संप और मदत देणाही मुख्य है ५४ व्यापार सब मुल्ककी आवं दानीका बीज है ५५ शराबसें खराब होणा है ५६ सभामें गुरूके पास और दरबारमें जाते संका मत लाओ पूछेका जबाब विचारके दो सभामें वैठणा वोलणा लायकीसें करो ५७ रानकी कचहरीमें हाकिम धमकावे तो या फुसलावे तो डरो भी मत और न फुसलाने पर कायदेके वर खिलाफ बात करो हाकिमोंका दस्तूर है कि मुद्दई और मुद्दयिलहके दिलको कमजोर कर बात पूछणा जिससे वह हड़वड़ाके कुछका कुछ कह उठे अब वह जमाना नहीं है जोकी न्यायकी गहरी खोजसे सच्चका सच्च झूठका झूठ और अब तो चालाकी सफाई और गवाहीसे मिसलका पेटा भरा, वस झूठा भी सच्चा वन जाता है ५८ जैनधर्मियोंकी रिवाज है कि, प्रात समय उठके, परमेष्ठी ध्यान मन गत करे, पीछे फिर शुच होके वस्त्र बदलके सामायक प्रतिक्रमण करे उहांसे उठ कर स्नान तिलक कर उत्तम श्रेष्ठ अष्ट द्रव्य लेकर जिन मन्दिरोंमें, या घर देरासरमें, पूजा करे, नैवेद्य बली चढाकर, वस्त्र पहन कर, गुरूकू यथा योग्य वन्दन कर, व्याख्यान सुणे, पच्चखाणकाया शक्ति मुनब, छछंडी चार आगार मोकला रक्खे, फिर घर पर सुपात्र तथा क्षुल्लक सिद्ध पुत्र, अनुकम्पावगैरह दान यथाशक्ति करके ऋतु पथ्य, प्रकृति पथ्य, कुलाचार मुजब भोजन दो भाग, एक भाग जल, एक भाग खाली पेट रक्खे, सराब ब्रांडी मिली तथा जीवोंके मांस चरबीसें वणा पदार्थ खांणा तो दूर रहा, लेकिन हाथसें भी स्पर्श, न करे वस्त्र उजले धोये हुए साफ पहरणा, आगे ऐसा रिवाज भारत वर्षमें था कि, शूद्र जातीके लोक, नख, बाल साफ कराए हुए शुद्ध वस्त्र पहन कर, शुद्ध ताईसें, भोजन रसवती तैय्यार करते, तब राजपूत वैश्य और ब्राह्मण भोजन करलेते स्वामी दया नन्दजी, सत्यार्थ प्रकाशमें लिखते हैं ऐसा वेदोंमें लिखा है, कौन जाने इसी रिवाजकों, हमारी जैन जाति ' कबूल करके चलते होंगे मारवाड़के, क्योंके आगे ब्राह्मण लोक भट्ट झोकणेका काम, शूद्रोंका समझ, नहीं करते थे, और वनोवासी ऋषि थे वह तो, मध्यान्हकों, एकही

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