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महाजनवंश मुक्तावली.
वाकी देशोंमें, जो श्रीमालोंकी वस्ती है, उन्होंमें गोत्रका पत्ता लगता है, भीनमाल गुजरात मारवाड़की संधी पर है, इस वास्ते श्रीमालोंके विवाह मरणे परणे का रिवाज, गुजरातियोंकी राह मुजब है, अब तो गुजराती श्रीमालियोंकी, अनेक तरहकी नई जाती संज्ञा बन्धगई है, जैसे के मारफतिया, घमघम, देवी इन्होंकी लक्ष्मी है ये बात यथार्थ मिलती भी है श्रीमाली ब्राह्मण और श्रीमाल लक्ष्मी के तो पात्रही हमने बहुतों को देखा है,
( पोरवाल जांगडा गोत्र २४ )
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श्री पद्मावती नगर (पारेवा) में २४ जातके राजपूतों के सवालक्षगृह वसते थे, इन्होंको महावीर स्वामीके ५ में पट्टधारी, श्रीयशोभद्रसूरिः प्रभुके निर्वाण पीछे डेढ़ से वर्ष करीब विक्रमके पूणा तीनसय वर्ष करीब पहले प्रति बोध देके, जैन धर्म धारण कराया, पारेवा नगरके होणेसें पोरवाल कहलाये, पीछे फिर कई हजार घर शैवधर्मी राजाओं की नोकरीसें होगये, वाकी जैनधर्मी रहै, विक्रम राजाके १०८ वर्ष वीतने पर, पोरवाल जावड़सा, बड़े नामी, शूर वीर जिनधर्मी अड़बों रुपये लगाकर, जिनमन्दिर, जीर्णोद्धार, सात क्षेत्रों में द्रव्य लगाया, सत्रुंजयका संघ निकालकर, कोड़ो सोनइये, जात्रियोंके लिये लगाये, फिर सत्रुंजय तीर्थका चौदहमा उद्धार कराया, सोले उद्धारोंमें इन्होंका नाम मौजूद है, कई हजार घर विष्णुधर्मीयोंको हरिभद्रसूरिःनें, प्रतिबोधे फिर संम्बत् एक हजारमें उद्योतनसूरिः जीके निजपट्ट धारी, वर्द्धमानसूरि : वैश्नव विमलशाह मंत्रीके, गोत्रवालोंको, तथा विमल मंत्रीको उपदेश दे आबू तीर्थ ब्राह्मणोंने दबा लिया था सो अठारह कोड बावन लाख सोनइये खरच ब्राह्मणोंको द्रव्य दे खुशकर पीछे कबजा करा वर्द्धमानसूरिःने मंत्राराधना से अम्बिका देवीको प्रत्यक्ष कर बादशाहोंको, बुलाया, जमीनमें अलोपमन्दिर पुष्पमाल ब्राह्मगों की कुमारी कन्या के, हाथसे, जहां गिरे, उहां ही जिनमन्दिर है उसस्थान प्राचीन मन्दिर निकला ये सब विस्तार खरतर गच्छकी गुर्वा वीमें विस्तार से विवरण लिखा है, जिनमन्दिर करवाया, सो विमलवसी नाम सें विक्षात है, फिर वस्तुपाल तेजपाल, वह सब संघ में दस्सा करनेवाला, इन्होंने
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