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महाजनवंश मुक्तावली.
क्लेश, और उपद्रव होता हुआ, सच्चा मिसला लोक कहते हैं, ( नीमे हकीम खतरे ज्यांन, । नीमे मुल्ला खतरे ईमान, ॥ ऐसे दुर्बुद्धियोंके उपदेशसें, भलाई क्या होनी थी, महा भयङ्कर समय आन पहुंचा, अग्निदाह, प्रचण्ड अन्धकार, अनावृष्टि, नाना तरहके उपद्रवसें, प्रजा पीड़ित हाहाकार मचगया, तब राजा मूर्छा खाकर, अचेत होगया, उस मू में, जो वह मुनिः होमे गये थे, वह दीखणे लगे, राजा उहांसें उठके, अपने उमरावोंको, संगले जंगलमें डोलने लगा, हाय मृत्युका वक्त आया, ऐसा विचारता उस बनमें पांचसय दिगाम्बर मुनी ध्यानमें खड़े हैं देखके चरणोंमें जागिरा, और रोता हुआ प्रार्थना करणे लगा, तब मुनि बोले, धर्मवृद्धि, राजा देशके उपद्रवकी शान्ति पूछता हुआ, तब आचार्य बोले हे राजा पापसें तो रोग दुकालदुःख संन्ताप होता है, और फिर तेने नरमेध यज्ञ कर, मुनियोंको, होमडाला, इस समय फल तो ये मिला है, वाकी तो कराणेवाले और तूं नरकका दुख पावेगा, जैसै खूनका भीजा कपड़ा खूनमें धोणेसें साफ नहीं होता, इस द्रष्टान्तानुसार बेदका यज्ञ है तेरा जीव जैसा तुझे प्यारा लगता है, वैसाही सर्व प्राणियोंका समझ, राजा बोला हे प्रभु, जो कुछ कसूर हुआ, सोतो हुआ, अब किसतरह शान्ति होय, वह विधी बतलाओ, गुरू बोले दयामूल जिनधर्म धारण करो, जगह २ चैत्यालय कराके, श्री जिनप्रतिमा धराके शान्तिक पूजन कराओ, धर्मका प्रभाव ऐसा है कि, दुष्ट पापकी शान्ति होगी, राजा खंडेलगिरीके खंडेलाके सर्व राजपूत, ८२ गांम, और २ गांम सुनारोंके, एवं ८४ गांमके सब मिलकर राजा खंडेलगिरि श्रावक धर्म
जुल्म मनुष्योंकों मारणेमें भी नहीं चूकते थे पतीके पिछाडी मोहाकुल स्त्रियोंको पती मिलापका, लालच दिखाकर उसका जर जेवर ले स्त्रियोंको अग्निमें जलाते थे, और अजाणलोक सती होणा अच्छा ब्राह्मणोंके बहकाये मानते चले आए, पुरुषोंका माल छीनकर कासीकर बतवणा मनुष्यों के प्राण लेत थे, बादशाह अकबरने जिनचन्द्रसूरिःके उपदेशसें, करबात लेणा बन्द करा रायपुर छत्तीसगढ़ जिल्ले महरिया पूजामें परदेशी मनुष्यका बलिदान होता था विसनोई ब्राह्मणोंके सखा जांभेका सांड़ मनुष्य बणाकर मारते थे अग्रेजोंने सत्ती वगैरह बन्धकरा बाहेर ब्राह्मणों बलिहारी है।