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संख्या
. महाजनवंश मुक्तावली.
गोत्र
वंश
७५ | मौलसरा गोत्र | सोढावंश
७६ भांगड़ा गोत्र
खीमरवंश
७७
लोहड्या गोत्र मौरठावंश ७८ खेत्रपाल्या गोत्र दुलालवंश ७९ राजभदरा गोत्र सांखलावंश कछावावंश
गांम
मौलसर गांम
भांगड गांम
लोहट गांम खेत्रपाल्या गांम हेमा देवी
राजभदरा गांम | सरस्वती देवी
वाल गां जलवांणी गांम वनवौड़ा गांम
जमवाय देवी जमवाय देवी
औरल देवी
श्री देवी
लठवाड़ा गांम निरपती गांम लाड परवाल पल्लीवाल
अमाणी देवी
वगैरह वणिक
जैन धर्म पालनेवाले इस समय जाती बहुत है मगर उन्होंकी उत्पत्ती गोत्रादिकका पत्ता मिल्नेसें किसी वक्त जरूर लिखा जायगा ये बात बहुत जाननें योज्ञ है आर्य देश २५ ॥ देशमें जितने वणिये व्यापारी दया धर्म पालते हैं वे सब राजपूत या ब्राह्मन वंश वालों को हिंसा धर्म वैद यज्ञ तथा मांस मदिरा खाणापीणा छुडाकर व्यापारी बणाणेवाले जैनके आचार्योंका उपकार है उन्होंमें से कइयक स्वामी शङ्कराचार्य के पीछे कोई बणिया शैव कोई विष्णु पीछे हो भी गये हैं, तथापि दया धर्म पालणा मांस मदिराका त्याग तो उन बणियोंकी जाती में प्रचलित है, वह जैन धर्म के आचार्योंका ही उपकार प्रथमका समझणा, क्योंकि स्वामी शङ्कराचार्यजी श्री चक्रकों माननेवाले थे, उन्होंके च्यार शिष्योंके नांमसे चारों ही हिन्दुस्थानकी दिशाओं में जो शृंगेरी १ द्वारिका वगैरह मठ है, उसमें श्री चक्रकी थापना है, और श्री चक्र है सो वाममार्गी कुंडा पन्थी शाक्तोंका निजपरम इष्ट है इसलिये वाम मार्गी मदिरा पीणा मांस खाणा पवित्र धर्म समझते हैं, मांस १ मदिरा २ मच्छी ३ मैथुन ४ और मुद्रा ५ ये पांच बातोंके करणेवाले, मुक्ति जाते हैं, ऐसा वाम मार्गका सिद्धान्त है, चंड़ालणीसें भोग करणा पुष्कर तीर्थ मानते हैं, रजस्वला २
कुलदेवी
सिखराय देवी
औरल देवी
लौसल घीयाड़ी
८ भुंवाल्या गोत्र
८१
जलवाण्या गोत्र कछावा वंश ८२ वैदाल्या गोत्र ठीमर वंश ८३ लढीवाल गोत्र सोढा वंश ८४
निरपाल्या गोत्र सौरटा वंश