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महाजनवंश मुक्तावली. ( अर्थ ) राजाकी आग्या एक, साधु वाक्य एक, कन्या एक बेर दी जाती है, ये तीनों एक ही होते हैं ? पुनः ऐसा भी कहा है, अमोघं वासरे विद्युत् अमोघं निशि गर्जनं, अमोघं साधुवाक्यंच, अमोघं देवदर्शनं ? ( अर्थ ) दिनकी चमकी बीजली, रातका गानना, यथार्थ साधु हो उसके वचन,
और देवताका प्रत्यक्ष दर्शन व्यर्थ नहीं होता ? इस लिये वर याच, तब राणीने कहा, स्वामी आपका अंग जात भवानी सिंह ठाकुर होगा के राजा, राजा समझ गया के राणी पुत्रकों राज्य मांगती है, राजा बोला, जा तेरे पुत्रको राज्य दिया, भूपतिको जागीर दूंगा राजानें कई अर्से पीछे बडे पुत्रको जागीर तीसरे हिस्सेका दिया, भूपतिनें कबूल करा, राजा परलोक पहुंचा, पिताके तख्त भवानी सिंह बैठा, भूपति सिंहनें अपणे बलसें पिता जितना राज्य बढालिया, अनेक राजा पायना मी हुए, तब भवानी सिंहनें, ईर्ष्यासे दूत भेजा, तूं मेरी सेवा कर, राज्यपती मैं हूं, तूं सामन्त है, भूपतिने गिनारा नहीं, तब लड़णेको फौज भेजी, तब भूपति सिंहने भाईको, अन्याई जाणकर, फौजकों मार भगाई, और आप आके पाटणके बाहिर कर घेरा दिया, दोनोंके घोर युद्ध हुआ, तब इस भूपति सिंहका मामा, वृद्ध भोजराना समझाणे आया, लेकिन दोनों भाई माने नहीं इतनेमें मान तुंगाचार्य भक्तामरस्तोत्रके कर्ता, उस वनमें समवप्तरे, मामा भाणनेकों ले, वन्दनकों गया, और गुरूसें धर्म देशनासुनी, चित्तमें धर्मकी वासना हुई, तब गुरूसें बोला, हे गुरू हूंबड़ हूं, और भवानी लघु है, इस वातकों आप, न्यायसें फरमा दो, कसूर किसका है, । गुरूने वृत्तांत सुण कहा तूं सच्चा है, और भवानीका पक्ष अहंकारपूरित है, तब राजा भोजने, अपना मनुष्य भेजके भवानीको बुलाके चरणोंमें लगाया, तब प्रशन्न होकर भूपतिनें सत्र राज्य अपना भी भाईकों देदिया, और अपने पुत्रोंयुक्त जैन महाजन श्रावक हुआ, सत्रुजयका संघ निकाला, गुरूके सामने कहा था के, हूं बड़ हूं, तत्र गुरूने जातीका नाम हूंबड धा, पीछे परिवार बहुत बढा कुमुद चन्द भट्टारकने, कई घर दिगाम्बर धर्ममें किए, कई घर विष्णु होगये